'हर गुजरता घंटा अहम है', Chief Justice ने नाबालिग रेप पीड़िता के अबॉर्शन के लिए लिया अहम फैसला

एक औरत के लिए भगवान का सबसे बड़ा दिया हुआ गिफ्ट एक मां बनना होता है. मां बनना जिंदगी में मिले सभी सुखों से ऊपर है. लेकिन मां बनना, बच्ता पैदा करना हर औरत ऐसा चाहे, ये जरुरी नहीं, अगर कुछ महिलाएं बच्ता संभालने की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहती तो उसके लिए उन्हें कोई बाध्य भी नहीं कर सकता. nइसी बात को ध्यान में रखते हुए भारत में अबॉर्शन के नियमों को संशोघित किया गया, जिसमें 20 – 24 हफ्तों के अंदर ही महिला अबॉर्शन कराना चाहे तो करा सकती है. लेकिन इसी बीच 14 साल की नाबालिग बच्ची के 29 हफ्तें के गर्भ को हटाने की मंजूरी दे दी है.  nChief Justice का फैसला  n14 साल की नाबालिग बच्ची के साथ रेप का मामला सामने आया है, जिसमें 29 हफ्तें की गर्भवती बच्ची को SC ने अबॉर्शन कराने की मंजूरी दे दी है. SC का मानना है कि यदि रेप पीड़िता इस प्रेगनेंसी को जारी रखती है तो उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका विपरीत असर पड़ेगा.  nChief Justice DY Chandrachud की बेंच ने नाबालिग के सुरक्षित गर्भपात की परमिशन देते हुए कहा कि ‘ऐसे मामले अपवाद जैसे होता हैं, जिसमें हमें बच्चों की सुरक्षा करनी होती है. नाबालिग बच्ची के लिए हर गुजरता घंटा अहम है.’ nस्वास्थ्य पर होगा बुरा असर   n4 अप्रैल को इस मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने गर्भपात की मंजूरी देने से इनकार कर दिया था. इसके बाद नाबालिग बच्ची की मां ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अपनी याचिका दाखिल की थी. इसके बाद केंद्र सरकार का पक्ष में अडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि अदालत को इस मामले में आर्टिकल 142 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए न्याय करना चाहिए, क्योंकि मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार यदि प्रेगनेंसी को जारी रखा गया तो इससे नाबालिग के स्वास्थ्य पर बेहद बुरा असर होगा.  nसुप्रीम कोर्ट का आदेश  nनाबालिग बच्ची की मां की अर्जी और केंद्र सरकार की दलील को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि तत्काल नाबालिग रेप पीड़िता का गर्भ हटा दिया जाए. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, ‘नाबालिग बच्ची की स्थिति को ध्यान में रखते हुए हम बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हैं.’ हम सियॉन लोकमान्य तिलक अस्पताल को आदेश देते हैं कि तुरंत नाबालिग का गर्भपात कराया जाए.  

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