लोकसभा चुनाव की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं, भारतीय चुनाव आयोग (ECI) ने लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान भी कर दिया है. 19 अप्रैल से 01 जून के बीच कुल सात चरणों में देश की 543 सीटों पर मतदान किए जाएंगे, जिसके परिणाम जून को सामने आएंगे. लोकसभा चुनाव 2024 की पहले फेज की वोटिंग में अब 3 दिन बाकी है. 19 अप्रैल को देशभर में 102 सीटों पर वोटिंग होगी. nवहीं असम में पहले फेज में की वोटिंग के साथ 14 लोकसभा सीटों पर मतदान होंगे. जिसके बाद असम में 26 अप्रैल रो दूसरे और 7 मई को तीसरे फेज के भी मतदान होंगे, लेकिन यहां असम लोकसभा चुनाव और वोटिंग के अलावा एक परिवार की चर्चा हो रही है, जिसकी कहानी काफी अनोखी है. nकहानी अनोखे परिवार की nकहानी इसलिए अनोखी है, क्योंकि कहानी का कनेक्शन इस परिवार के मेंबरों से हैं. यह परिवार 350 वोटर्स का हैं, जो 19 अप्रैल को एक साथ मतदान करेंगे. दरअसल यह परिवार नेपाली मूल के रॉन बहादुर थापा का है, जो आजकल असम के रंगपारा विधानसभा क्षेत्र और सोनितपुर संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले फुलोगुरी में रहता है. nnLS polls: This big, fat Assam family has nearly 350 voters!Read @ANI Story | https://t.co/6FxUm2A6bz#Sonitpur #RonBahadurThapa #LokSabaElection2024 pic.twitter.com/7A0tEpTRPvn— ANI Digital (@ani_digital) April 15, 2024nnnnपरिवार में कितने सदस्य? nनेपाली पाम गांव के ग्राम प्रधान रहे रॉन बहादुर थापा अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके बेटे तिल बहादुर थापा और उनका भरा पूरा परिवार आज भी पूरे देश में सुर्खियों में बना हुआ है. तिल बहादुर थापा के अनुसार उनके परिवार के 350 लोग मतदान करने के लिए उत्साहित हैं. उनके पिता रॉन बहादुर की 5 पत्नियां थीं और उनसे उन्हें 12 बेटे और 9 बेटियां हुईं. nनेपाल से भारत आकर बसे nबेटों से करीब 56 पोते-पोतियां हैं. वहीं आज भी पूरे परिवार में करीब 150 से अधिक पोते-पोतियां जीवित हैं. बेटियों से कितने दोहते-दोहतियां हैं, इसकी पूरी जानकारी अभी तक नहीं है, लेकिन पूरे परिवार में कुल मिलाकर 1200 से भी ज्यादा मेंबर्स हैं. बता दें कि रॉन बहादुर थापा 1964 में नेपाल से भारत आए थे और साल 1997 में दुनिया को अलविदा कह दिया था. nसरकारी सुविधाओं से वंचित परिवारnबावजूद इसके आज तक परिवार राज्य और केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाया है. परिवार के कई बच्चे पढ़-लिख कर हायर एजुकेशल तक ले चुके हैं, लेकिन अभी तक उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिल रही. परिवार के कुछ सदस्य नौकरी की तलाश में बेंगलुरु चले गए। देश के अन्य शहरों में भी उनके परिवार के कई सदस्य नौकरी कर रहे हैं। जो गांव में रहते हैं, उनमें से ज्यादातर दिहाड़ी मजदूरी करके गुजारा करते हैं, लेकिन सरकारी स्कीमों से परिवार वंचित है.



