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शारदीय नवरात्रि का तीसरा दिन आज, जानें मां चंद्रघंटा की कथा और पूजा का महत्व

नवरात्रि में तीसरे दिन की अधिष्ठात्री देवी मां चंद्रघंटा हैं. माता चंद्रघंटा का स्वरूप बड़ा अद्भुत और विलक्षण है. नवदुर्गा ग्रंथ (एक प्रतिष्ठित प्रकाशन) के अनुसार इनकी सवारी सिंह है. इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्ध चंद्र है. इसलिए इन्हें ‘चंद्रघंटा’ के नाम से जाना जाता है.

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नवरात्रि के तीसरे दिन इनकी साधना करनेवाले का मन मणिपुर चक्र में स्थित होने के कारण उसे विलक्षण प्रतीत होती है. वातावरण सुगंधमय हो जाता है और विशेष ध्वनियां सुनाई पड़ती है. इनका मन्त्र निम्नलिखित है :–

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पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

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प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।

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माता का रंग स्वर्णमय है. वे कांति से ओत-प्रोत हैं. इनके शरीर से निकलनेवाली घंटा ध्वनि से भूत–प्रेत, शत्रु आदि ये सब भाग जाते हैं. वे अपने भक्तों को निडर और भयहीन बनाती हैं. सदा शत्रुओं का मर्दन करनेवाली माता चंद्रघंटा का स्वरूप सौम्य और शांत है. शरणागत घंटे की ध्वनि सुनते ही आश्वस्त हो जाता है कि माता उसपर कृपा अवश्य बरसाएंगी. इनकी सौम्यता और शांत चित्त का प्रभाव भक्तों पर भी पड़ता है, उसका शरीर भी प्रकाशमय हो जाता है.

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