Tahawwur Rana : मुंबई हमले का मुख्य साजिशकर्ता तहव्वुर राणा अब भारत की गिरफ्त में है। अमेरिका से प्रत्यर्पण के बाद उसे भारत लाया गया और अब उसके खिलाफ आतंकी हमले से जुड़े गंभीर आरोपों पर मुकदमा चलेगा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है – क्या ये केस भी बाकी मामलों की तरह लंबा खिंचेगा, या फिर इसे समयबद्ध तरीके से निपटाया जाएगा?
इस सवाल का जवाब मिलता है भारतीय न्याय प्रणाली में हाल ही में लागू हुए नए कानून, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) से, जो मुकदमों के त्वरित निपटारे के लिए तय समय-सीमा देता है। ये नया कानून “तारीख पर तारीख” की पुरानी कहावत को खत्म करने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।
Tahawwur Rana पर मुकदमे में नया मोड़
एनआईए (NIA) ने तहव्वुर राणा के खिलाफ 2009 में ही एफआईआर दर्ज कर ली थी। लेकिन उसे भारत लाने में 15 साल का लंबा समय लग गया। अब जबकि वो भारत में है, कोर्ट ने उसे 18 दिन की हिरासत में भेज दिया है ताकि एनआईए उससे गहन पूछताछ कर सके।
यहीं से नया कानून प्रभाव में आता है। BNSS के मुताबिक, किसी भी अपराध की जांच 60 से 90 दिन में पूरी होनी चाहिए और इसी अवधि में आरोप पत्र (Chargesheet) दाखिल करना अनिवार्य है। केवल विशेष परिस्थितियों में ही जांच को अधिकतम 180 दिन तक बढ़ाया जा सकता है, वो भी कोर्ट की अनुमति से।
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अदालतों के लिए भी तय है समय
सिर्फ जांच एजेंसियों ही नहीं, बल्कि अदालतों के लिए भी नया कानून समय-सीमा तय करता है। जैसे ही आरोप पत्र दाखिल होता है, अदालत को 14 दिन के भीतर संज्ञान लेना होगा और 120 दिनों में ट्रायल शुरू हो जाना चाहिए। इसके साथ ही केस संबंधित दस्तावेजों की प्रक्रिया को 30 दिनों में पूरा करना जरूरी होगा।
Tahawwur Rana जैसे हाई-प्रोफाइल केस में संभावना है कि ट्रायल दैनिक आधार पर चलेगा, जिससे ये केस जल्दी समाप्त हो सकता है।
फैसले के लिए भी तय है डेडलाइन
नए कानून के अनुसार, ट्रायल खत्म होने के 30 दिनों के भीतर अदालत को फैसला सुनाना होगा। अगर किसी कारणवश फैसला 30 दिन में नहीं दिया जाता, तो न्यायालय को लिखित रूप से कारण दर्ज करना होगा और यह अवधि अधिकतम 45 दिन तक ही बढ़ाई जा सकती है। इससे ये सुनिश्चित होता है कि न्याय प्रक्रिया अनावश्यक रूप से लंबी न चले।
अपील में देरी की गुंजाइश नहीं
भारतीय न्याय व्यवस्था में एक आम शिकायत रही है कि ट्रायल के बाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील लंबी खिंचती है। लेकिन अजमल कसाब के केस की तरह, तहव्वुर राणा के मामले में भी तेज़ सुनवाई की उम्मीद है। कसाब को गिरफ्तारी से फांसी तक महज चार साल में सजा दी गई थी। अब तो नए कानून में ये प्रक्रिया और भी तेज़ हो सकती है।
दया याचिका के मामले में भी BNSS साफ दिशा-निर्देश देता है – सुप्रीम कोर्ट से अपील खारिज होने के 30 दिनों के भीतर दया याचिका दाखिल करनी होगी। इससे मृत्युदंड वाले मामलों में अंतिम निर्णय में होने वाली देरी भी समाप्त होगी।
तारीख पर तारीख की कहानी अब खत्म?
Tahawwur Rana के केस में जो सबसे अहम बात है, वो है नए कानून का प्रभावी क्रियान्वयन। अगर जांच एजेंसी, न्यायपालिका और अन्य सभी संबंधित विभाग नए नियमों का पालन करते हैं, तो ये केस एक मिसाल बन सकता है, जहां न्याय समयबद्ध तरीके से होता है।
मुंबई हमले जैसे भयावह आतंकवादी घटना के मुख्य साजिशकर्ता को अब बच निकलने का मौका नहीं मिलेगा। देश को उम्मीद है कि नए कानून के तहत तहव्वुर राणा का मुकदमा तेजी से निपटेगा, और पीड़ितों को न्याय मिलेगा – बिना अनावश्यक देरी के।