Acharya Satyendra Das Jal Samadhi: अयोध्या के राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास (Acharya Satyendra Das) का 12 फरवरी, बुधवार को 85 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था। 13 फरवरी को उनके पार्थिव शरीर को सरयू नदी में जल समाधि दी गई। इस खबर के बाद अयोध्या के मठ-मंदिरों में शोक की लहर है।
पूरे विधि विधान के साथ आचार्य का अंतिम संस्कार किया गया। लेकिन बड़ी बात ये है कि उनका अंतिम संस्कार जल समाधि करके किया गया। लेकिन, कई लोगों के मन में ये सवाल उठ रहा है कि साधु-संतों को जल समाधि क्यों दी जाती है? और उनका दाह संस्कार क्यों नहीं किया जाता? आइए जानते हैं इसके पीछे का धार्मिक और आध्यात्मिक कारण।
Jal Samadhi क्या होती है?
सनातन धर्म में अंतिम संस्कार की अलग-अलग विधियां होती हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया जल समाधि है। खासकर साधु-संतों के लिए इस परंपरा को अपनाया जाता है। इसमें शव को जल में प्रवाहित किया जाता है, बिना अग्नि संस्कार के। इस दौरान भारी पत्थरों से शव को बांध दिया जाता है, जिससे वो नदी की गहराई में समाहित हो जाए।
Acharya Satyendra Das को जल समाधि क्यों दी ?
हिंदू धर्म में जल को सबसे पवित्र माना गया है। शास्त्रों में जल देवता वरुण को भगवान विष्णु का ही स्वरूप माना गया है। इसलिए, अग्नि संस्कार के बजाय जल समाधि को पवित्र और श्रेष्ठ माना जाता है।
शास्त्रों के अनुसार:
- सृष्टि की शुरुआत और अंत दोनों जल से जुड़े हैं।
- देवी-देवताओं की मूर्तियों का भी विसर्जन जल में ही किया जाता है।
- जल को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना जाता है।
आध्यात्मिक कारण – जल समाधि की परंपरा
साधु-संतों का जीवन योग, ध्यान और साधना से जुड़ा होता है, जिससे उनका शरीर एक विशेष ऊर्जा से भर जाता है। इसलिए उनके शरीर को जल में प्रवाहित कर प्रकृति में विलीन कर दिया जाता है। प्राचीनकाल में ऋषि-मुनि भी जल समाधि लेते थे और कुछ संत तो जल समाधि में बैठकर ही तपस्या करते थे।
धार्मिक कारण – जल समाधि क्यों महत्वपूर्ण है?
पंचतत्व में विलीन होना
सनातन धर्म में माना जाता है कि मानव शरीर पंचतत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) से बना होता है। साधु-संतों के त्यागमय जीवन को देखते हुए उनका शरीर अग्नि की बजाय जल में विलीन कर दिया जाता है।
अग्नि संस्कार से बचाव
साधु-संत मोह-माया से मुक्त होते हैं, इसलिए आम लोगों की तरह उनका दाह संस्कार नहीं किया जाता। जल समाधि को उनका वैराग्य और तपस्या का प्रतीक माना जाता है।
जल को मोक्ष का माध्यम मानना
गंगा, यमुना, नर्मदा जैसी पवित्र नदियों को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना जाता है। साधु-संत मानते हैं कि जल में समाधि लेने से उनका शरीर सीधे प्रकृति में समाहित होकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
आचार्य सत्येंद्र दास जी को जल समाधि देना हिंदू परंपरा का एक गहरा आध्यात्मिक और धार्मिक पहलू है। साधु-संतों का जीवन त्याग, तपस्या और ध्यान पर आधारित होता है, इसलिए उनके अंतिम संस्कार की विधि भी अग्नि संस्कार से अलग होती है। जल समाधि का प्रमुख उद्देश्य शरीर को पंचतत्व में विलीन करना और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बनाना है।