अपराध

Atul Subhash Suicide: अतुल सुभाष की हत्या हुई थी- वकील

AI इंजीनियर Atul Subhash की आत्महत्या का मामला अब हत्या का शक पैदा कर रहा है। उनके परिवार और समर्थक न्याय की गुहार लगा रहे हैं। इस बीच, उनकी वकील प्रिया जैन ने बड़ा बयान देते हुए इसे आत्महत्या नहीं, बल्कि हत्या करार दिया है।

फिल्म ‘3 इडियट्स’ का उदाहरण

समाचार एजेंसी ANI से बातचीत में प्रिया जैन ने फिल्म ‘3 इडियट्स’ का जिक्र किया। उन्होंने कहा, “फिल्म में एक सीन है जहां एक स्टूडेंट ने आत्महत्या से पहले ‘I Quit’ लिखा था। तब आमिर खान का किरदार बोमन ईरानी से कहता है कि ये आत्महत्या नहीं, बल्कि मर्डर है।” उन्होंने इसी संदर्भ में कहा कि अतुल सुभाष की स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी।


पुराने कानून और जेंडर सेंसिटिविटी की जरूरत

प्रिया जैन ने भारत के पुराने कानूनों पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “आज 2024 में भी हमारे देश में कई ऐसे कानून हैं जो पुराने समय के हिसाब से बनाए गए थे। अदालतों में जेंडर सेंसिटिविटी का ख्याल रखा जाना बेहद जरूरी है।”
उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि जज ने एक सुनवाई के दौरान हंसते हुए कहा था, “इतना कमाते हो, तो पैसा तो देना ही होगा।” उन्होंने इसे असंवेदनशीलता का उदाहरण बताया।


क्या है मामला?

अतुल सुभाष, जो पेशे से एक AI इंजीनियर थे, ने 2019 में निकिता सिंधानिया से शादी की थी। लेकिन तलाक के बाद उनकी पत्नी ने उनसे तीन करोड़ रुपये की मांग की। उनकी पत्नी ने अतुल के खिलाफ कई केस भी दर्ज किए थे।

सुसाइड नोट और वीडियो
अतुल सुभाष ने आत्महत्या से पहले 24 पन्नों का सुसाइड नोट लिखा और 1 घंटे 21 मिनट का वीडियो बनाया।
इसमें उन्होंने अपनी पत्नी और उसके परिवार पर मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि उनकी पत्नी और उसके परिवार ने उनसे बच्चे से मिलने देने के बदले 30 लाख रुपये मांगे।


देशभर में उठा सवाल

इस आत्महत्या ने देशभर का ध्यान खींच लिया है। अतुल के परिवार का दावा है कि ये सिर्फ आत्महत्या का मामला नहीं, बल्कि सामाजिक अन्याय और मानसिक प्रताड़ना का नतीजा है। प्रिया जैन और परिवार अब इस मामले में न्याय की मांग कर रहे हैं और कानून में बदलाव की जरूरत पर जोर दे रहे हैं।

अतुल सुभाष की आत्महत्या ने देश में जेंडर सेंसिटिविटी, कानूनों की प्रासंगिकता और मानसिक स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर बहस छेड़ दी है। ये मामला सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हमारे सामाजिक और कानूनी तंत्र में बदलाव की जरूरत है?


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