CAG Report on Delhi Liquor Policy: नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की ताजा रिपोर्ट में दिल्ली की आबकारी नीति और शराब की आपूर्ति से जुड़े नियमों में गंभीर खामियां उजागर हुई हैं। रिपोर्ट में ये बताया गया है कि दिल्ली आबकारी विभाग की नीतियों और उनके क्रियान्वयन में पारदर्शिता की कमी रही, जिससे सरकार को लगभग ₹2,026.91 करोड़ का नुकसान हुआ।
दिल्ली सरकार के कुल कर राजस्व का लगभग 14% योगदान आबकारी विभाग से आता है। ये विभाग शराब और नशीले पदार्थों के व्यापार को नियंत्रित और विनियमित करता है, साथ ही शराब की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी निभाता है। 1 जुलाई 2017 से जीएसटी लागू होने के बाद, शराब ही एकमात्र ऐसा उत्पाद था जिस पर उत्पाद शुल्क लागू रहा, और इसी से विभाग का मुख्य राजस्व आता है।
#WATCH दिल्ली: दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने आबकारी नीति 2024 पर CAG रिपोर्ट पेश की।
— ANI_HindiNews (@AHindinews) February 25, 2025
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कैसे हुआ शराब घोटाला?
CAG रिपोर्ट में बताया गया है कि शराब नीति में कई अनियमितताएं और लापरवाह फैसले लिए गए, जिससे दिल्ली सरकार को बड़ा नुकसान हुआ:
- 941.53 करोड़ का नुकसान – कई जगहों पर खुदरा शराब की दुकानें नहीं खुलीं।
- 890 करोड़ का घाटा – सरेंडर किए गए लाइसेंसों को दोबारा नीलाम करने में सरकार नाकाम रही।
- 144 करोड़ की छूट – कोविड-19 के दौरान शराब कारोबारियों को दी गई छूट।
- 27 करोड़ का नुकसान – शराब कारोबारियों से उचित सुरक्षा जमा राशि नहीं ली गई।
शराब आपूर्ति प्रणाली:
शराब की आपूर्ति प्रणाली में विभिन्न पक्ष शामिल होते हैं, जैसे निर्माताओं, गोदामों, शराब की दुकानों, होटलों, क्लबों और रेस्तरां से होते हुए उपभोक्ताओं तक। आबकारी विभाग विभिन्न मदों से राजस्व एकत्र करता है, जैसे उत्पाद शुल्क, लाइसेंस शुल्क, परमिट शुल्क, आयात/निर्यात शुल्क आदि।
लाइसेंस जारी करने में नियमों का उल्लंघन:
कैग रिपोर्ट में यह पाया गया कि आबकारी विभाग ने लाइसेंस जारी करते समय नियमों का पालन ठीक से नहीं किया। दिल्ली आबकारी नियम, 2010 के तहत, एक व्यक्ति या कंपनी को एक साथ कई प्रकार के लाइसेंस नहीं दिए जा सकते थे, लेकिन जांच में पाया गया कि कुछ कंपनियों को एक साथ कई लाइसेंस दिए गए थे।
मनमाने ढंग से तय की गई कीमतें:
रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि थोक विक्रेताओं को शराब की कीमत तय करने की स्वतंत्रता दी गई, जिससे कीमतों में हेरफेर हुआ। कुछ कंपनियां एक ही ब्रांड की शराब के लिए विभिन्न राज्यों में अलग-अलग कीमतें तय कर रही थीं। इस वजह से सरकार को उत्पाद शुल्क के रूप में नुकसान हुआ, क्योंकि कीमतों की जांच ठीक से नहीं की गई थी।
गुणवत्ता नियंत्रण की कमी:
दिल्ली में बिकने वाली शराब की गुणवत्ता सुनिश्चित करना आबकारी विभाग की जिम्मेदारी थी। हालांकि, रिपोर्ट में पाया गया कि कई लाइसेंसधारकों ने आवश्यक गुणवत्ता जांच रिपोर्ट नहीं दी। 51% मामलों में विदेशी शराब की टेस्ट रिपोर्ट या तो पुरानी थी या उपलब्ध नहीं थी। इसके अलावा, कई रिपोर्टें उन लैब्स से आईं जो मान्यता प्राप्त नहीं थीं।
आबकारी खुफिया ब्यूरो की कमजोर भूमिका:
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि आबकारी खुफिया ब्यूरो की भूमिका कमजोर रही, जिससे शराब तस्करी को रोकने में कठिनाई आई। 65% जब्त की गई शराब देसी थी, जो अवैध आपूर्ति के बड़े पैमाने को दर्शाता है।
नई आबकारी नीति में खामियां:
नई आबकारी नीति 2021-22 में भी कई खामियां पाई गईं। सरकार ने निजी कंपनियों को थोक व्यापार का लाइसेंस दिया, जिससे सरकारी कंपनियां बाहर हो गईं। कैबिनेट की मंजूरी के बिना नीति में बदलाव किए गए, जिससे सरकारी खजाने को ₹2,002 करोड़ का नुकसान हुआ।
CAG के सुझाव:
कैग ने ये सुझाव दिया है कि लाइसेंस प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए और शराब की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए मुनाफाखोरी पर अंकुश लगाया जाए। साथ ही, गुणवत्ता नियंत्रण को सख्त किया जाए ताकि नकली शराब की बिक्री रोकी जा सके।
शराब तस्करी रोकने के लिए आधुनिक तकनीकों और डेटा एनालिटिक्स का उपयोग किया जाए। अब ये देखना होगा कि दिल्ली सरकार इस रिपोर्ट के बाद क्या कदम उठाती है और कितना सुधार करती है।