Chhatrapati Sambhaji Maharaj : छत्रपति संभाजी महाराज की वीरता और बलिदान भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। औरंगज़ेब (Aurangzeb) की क्रूरता का शिकार हुए संभाजी महाराज ने मराठा स्वराज की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। लेकिन उनके बलिदान के बाद मराठों ने इस अपमान और अन्याय का बदला लिया। आइए जानते हैं कि धर्मवीर संभाजी महाराज की शहादत का बदला किसने और कैसे लिया।
Chhatrapati Sambhaji Maharaj का बलिदान
छत्रपति शिवाजी महाराज के वीर पुत्र संभाजी महाराज को 1689 में मुगल सम्राट औरंगज़ेब ने बंदी बना लिया था। उन्हें अमानवीय यातनाएं दी गईं, लेकिन उन्होंने धर्म परिवर्तन से इनकार कर दिया। अंततः, 11 मार्च 1689 को उन्हें क्रूरता से मृत्यु के घाट उतार दिया गया।
संभाजी महाराज की शहादत ने मराठा साम्राज्य को झकझोर कर रख दिया, लेकिन उनके बलिदान ने मराठों में बदले की ज्वाला जगा दी।
मराठों का संगठित प्रतिशोध
संभाजी महाराज के बलिदान के बाद उनके छोटे भाई राजाराम महाराज ने मराठा साम्राज्य की बागडोर संभाली। उन्होंने दक्षिण भारत में जाकर मुगलों के खिलाफ छापामार युद्ध शुरू किया। मराठों की सेना ने छोटे-छोटे समूहों में बंटकर मुगल सेना पर लगातार हमले किए और उन्हें कमजोर किया।
संताजी घोरपड़े और धनाजी जाधव का नेतृत्व
संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद मराठा सेना का नेतृत्व संताजी घोरपड़े और धनाजी जाधव जैसे वीर सरदारों ने किया। इन योद्धाओं ने मुगलों पर कड़ा प्रहार किया और कई महत्वपूर्ण युद्ध जीते।
- संताजी घोरपड़े और धनाजी जाधव ने मुगल सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध छेड़ा।
- उन्होंने मुगल सेनापति कमरुद्दीन खान और जुल्फिकार खान को कई बार पराजित किया।
- कई स्थानों पर मुगलों की छावनियों पर हमला कर उन्हें भारी क्षति पहुंचाई।
Aurangzeb की हार की शुरुआत
मराठों के प्रतिशोध ने औरंगज़ेब (Aurangzeb) को कमजोर करना शुरू कर दिया। राजाराम महाराज के निधन के बाद, महारानी ताराबाई ने मराठा सेना का नेतृत्व किया और मुगलों से जमकर लोहा लिया। 1707 में औरंगज़ेब की मृत्यु के साथ ही मराठों की शक्ति और बढ़ गई। उन्होंने मुगल साम्राज्य पर आक्रामक रणनीति अपनाई और अंततः दिल्ली तक अपने प्रभाव को बढ़ा लिया।
छत्रपति संभाजी महाराज का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। मराठों ने संगठित होकर उनका बदला लिया और औरंगज़ेब की शक्ति को खत्म कर दिया। संताजी घोरपड़े, धनाजी जाधव, राजाराम महाराज और महारानी ताराबाई जैसे योद्धाओं ने मराठा साम्राज्य को मजबूत किया और मुगलों को पराजित किया।
संभाजी महाराज के बलिदान ने मराठाओं में एक नई ऊर्जा भर दी और उन्होंने मुगलों के खिलाफ अपने संघर्ष को और तेज कर दिया। संभाजी महाराज का साहस और बलिदान आज भी हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनका नाम इतिहास के पन्नों में सदा अमर रहेगा।