देश के 5 राज्यों में चुनावों के परिणाम 3 दिसम्बर को जारी होंगे. मतगणना के दौरान कई बार ऐसी स्थिति बनती है जब फैसला लेना मुश्किल हो जाता है. मान लीजिए मतगणना में एक सीट पर दो उम्मीदवारों को बराबर से वोट मिलें, तो कैसे तय होगा कि कौन विजेता है. ज्यादातर लोगों के पास इस सवाल की जानकारी नहीं होती, लेकिन चुनाव आयोग ने अपनी नियमावली इसका हल बताया है.nकौन होगा विजेता, ऐसे होता है तय?nऐसे हालात में क्या फैसला लिया जाए, इसकी जानकारी भारतीय संविधान में दी गई है. संविधान का रीप्रेजेंटशन ऑफ द पीपुल एक्ट का सेक्शन 102 कहता है, बराबर से वोट मिलने पर चुनाव आयोग लॉटरी कराता है. लॉटरी जिस उम्मीदवार के पक्ष में आती है उसे एक अतिरिक्त वोट मान लिया जाता है. इस तरह लॉटरी के जरिए एक वोट बढ़ने पर उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है.nजब एक ही सीट पर दो उम्मीदवारों को मिले बराबर वोटnअब तक ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जब एक ही सीट पर दो उम्मीदवारों को बराबर वोट मिले थे. दिसम्बर 2017 में मथुरा-वृंदावन नगर निगम चुनाव में भाजपा की उम्मीदवार मीरा अग्रवाल ने वार्ड 56 से चुनाव लड़ा था. उन्हें 874 वोट मिले थे. और इतने ही मत कांग्रेस उम्मीदवार को भी मिले थे.nफरवरी 2017 में भी ऐसा ही मामला सामने आया. बीएमसी के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार अतुल शाह और शिवसेना के सुरेंद्र के बीच कांटे का मुकाबला फंस गया. दरअसल, पहली मतगणना के बाद नतीजों में अतुल शाह हार गए, इसके बाद उन्होंने मतगणना को चुनौती दी और मतों की गिनती दोबारा कराने की मांग रखी.nजब दोबारा मतगणना की गई तो दोनों उम्मीदवारों के बीच कांटे का मुकाबला फंस गया. दोनों के मत बराबर थे. मतगणना में किसी तरह की गड़बड़ी न हुई हो, इसलिए दोबारा काउंटिंग की गई और इस बार भी दोनों के बीच बराबरी का मुकाबला फंस गया. इसके बाद लॉटरी के जरिए अतुल शाह को विजेता घोषित किया गया.nइस तरह ऐसे मामलों में लॉटरी के जरिए विजेता घोषित किया जाता है, हालांकि अगर कैंडिडेट को लगता है कि मतगणना में कोई गड़बड़ी हुई है तो वो री-काउंटिंग के लिए कह सकता है, लेकिन ऐसा करते समय उसे इसकी वाजिब वजह भी बतानी होगी.