Mahavir Jayanti 2025 : भारत एक ऐसा देश है जहां अनेक धर्मों और परंपराओं को सम्मान के साथ मनाया जाता है। इन्हीं पर्वों में से एक है महावीर जयंती, जो जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी (Bhagwan Mahavir Swami) की जयंती के रूप में मनाई जाती है। ये पर्व (Mahavir Jayanti) सिर्फ जैन समाज के लिए ही नहीं, बल्कि समस्त भारतीय संस्कृति के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है।
इस लेख में हम जानेंगे कि महावीर जयंती क्यों मनाई जाती है, भगवान महावीर का जीवनकाल कब था और उनके उपदेश आज भी हमारे लिए कितने प्रासंगिक हैं।
महावीर जयंती क्यों मनाई जाती है? (Mahavir Jayanti Celebration)
Mahavir Jayanti जैन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। ये पर्व भगवान महावीर स्वामी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन जैन अनुयायी मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं, महावीर स्वामी के उपदेशों का स्मरण करते हैं, और जुलूस (रथ यात्रा) का आयोजन करते हैं।
भगवान महावीर ने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह जैसे सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाया और समाज को एक नैतिक मार्ग दिखाया। इसलिए, उनकी जयंती न केवल धार्मिक पर्व है, बल्कि ये मानवता, शांति और नैतिकता का संदेश देती है।
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भगवान महावीर का जन्म कब हुआ था?
भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व में हुआ था। उनका जन्म बिहार राज्य के वैशाली जिले के कुंडलपुर नाम के स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम राजा सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला देवी था। वे इक्ष्वाकु वंश के थे और बचपन से ही अत्यंत बुद्धिमान, त्यागी और करूणामयी स्वभाव के थे।
ऐसा माना जाता है कि त्रिशला देवी ने उनके जन्म से पहले 14 शुभ स्वप्न देखे थे, जो उनके दिव्य व्यक्तित्व की भविष्यवाणी करते थे।
महावीर का युवावस्था और तपस्या
महावीर स्वामी का बचपन एक राजकुमार के रूप में बीता, लेकिन उन्होंने सांसारिक सुखों को त्याग कर मात्र 30 वर्ष की आयु में घर त्याग दिया। इसके बाद उन्होंने 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की और आत्मज्ञान प्राप्त किया।
इसी ज्ञान के बल पर वे केवलज्ञानी बने और जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर घोषित हुए। उन्होंने अपने जीवन में लोगों को आत्मशुद्धि और मोक्ष का मार्ग दिखाया।
महावीर स्वामी के उपदेश
भगवान महावीर ने जो मूल सिद्धांत दिए, वे आज भी सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में अत्यंत उपयोगी हैं:
- अहिंसा (Non-violence): किसी भी जीव को कष्ट न पहुँचाना ही सच्चा धर्म है।
- सत्य (Truth): सत्य बोलना और उसका पालन करना।
- अस्तेय (Non-stealing): किसी की वस्तु को बिना अनुमति न लेना।
- ब्रह्मचर्य (Celibacy): संयमित जीवन जीना।
- अपरिग्रह (Non-possessiveness): भोग-विलास और संग्रह से दूरी रखना।
इन सिद्धांतों ने ना सिर्फ जैन अनुयायियों को, बल्कि गांधी जी जैसे कई महान नेताओं को भी गहराई से प्रभावित किया।
महावीर स्वामी की मृत्यु कब हुई?
भगवान महावीर ने 72 वर्ष की आयु में 527 ईसा पूर्व में पावापुरी (वर्तमान बिहार) में मोक्ष प्राप्त किया। उनका देहांत दीपावली के दिन हुआ था, और इसी कारण जैन धर्म में दीपावली को विशेष आध्यात्मिक महत्व प्राप्त है।
महावीर जयंती का सामाजिक महत्व
आज के समय में जब समाज हिंसा, असत्य और भ्रष्टाचार से जूझ रहा है, महावीर स्वामी के उपदेश और विचार पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्ची शांति और सुख बाहरी दुनिया में नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और संयम में है।
महावीर जयंती केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि ये आत्मचिंतन का दिन है। ये दिन हमें याद दिलाता है कि जीवन में भौतिक सफलता से ज्यादा जरूरी है आत्मिक शुद्धता। भगवान महावीर की शिक्षाएँ हमें न केवल एक बेहतर इंसान बनाती हैं, बल्कि समाज को भी नैतिक और शांतिपूर्ण दिशा देती हैं।
“जियो और जीने दो” – यही महावीर का सबसे बड़ा संदेश था, जो आज भी उतना ही सार्थक है जितना 2500 साल पहले था।