New Education Police: भारत की नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 को लागू करने के बाद से ही इसे लेकर कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। हाल ही में भाषा से जुड़े मुद्दों को लेकर इस नीति पर फिर से बहस छिड़ गई है। कई राज्यों में विरोध हो रहा है।
तो वहीं कुछ लोग इसे भारतीय भाषाओं के उत्थान की दिशा में एक बड़ा कदम मान रहे हैं। सवाल ये उठता है कि आखिर नई शिक्षा नीति में ऐसा क्या है, जिस पर इतना हंगामा मचा हुआ है? आइए जानते हैं इस पूरे विवाद को विस्तार से।
नई शिक्षा नीति में भाषा को लेकर क्या प्रावधान हैं?
नई शिक्षा नीति के तहत सरकार ने शिक्षा के माध्यम (Medium of Instruction) को लेकर बड़ा बदलाव किया है। इसमें सुझाव दिया गया है कि कक्षा 5 तक और जहां संभव हो, वहां कक्षा 8 तक शिक्षा मातृभाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा में दी जानी चाहिए। इस नीति में “त्रिभाषा फॉर्मूला” को भी बढ़ावा दिया गया है, जिसके तहत छात्रों को तीन भाषाएं सीखनी होंगी, जिनमें से दो भारतीय भाषाएं होनी चाहिए।
विवाद क्यों हो रहा है?
- हिंदी थोपने का आरोप:
दक्षिण भारत के कई राज्यों, खासकर तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में इस नीति का विरोध हो रहा है। तमिलनाडु में इसे “हिंदी थोपने” की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। वहां के नेता और संगठनों का कहना है कि केंद्र सरकार शिक्षा के जरिए हिंदी को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है, जिससे क्षेत्रीय भाषाओं को नुकसान होगा। - अंग्रेजी माध्यम स्कूलों पर असर:
कई लोग मानते हैं कि मातृभाषा में शिक्षा देने की बाध्यता से अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों पर असर पड़ेगा। आज के दौर में अंग्रेजी को ग्लोबल लैंग्वेज माना जाता है और इसका ज्ञान आगे की उच्च शिक्षा और रोजगार के लिए जरूरी माना जाता है। ऐसे में कई माता-पिता को ये डर है कि उनके बच्चों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में कठिनाई हो सकती है। - उत्तर-दक्षिण भाषाई विभाजन:
दक्षिण भारत के लोग हिंदी को जबरदस्ती थोपे जाने का मुद्दा उठाते रहे हैं, वहीं उत्तर भारत में हिंदी को एक सामान्य भाषा के रूप में स्वीकार किया जाता है। इस नीति के बाद ये बहस फिर से तेज हो गई है कि क्या हिंदी को पूरे देश में मुख्य भाषा बनाया जा रहा है? - राज्यों का अधिकार क्षेत्र:
शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची (Concurrent List) में आती है, यानी केंद्र और राज्य दोनों इस पर कानून बना सकते हैं। कुछ राज्यों का कहना है कि केंद्र सरकार राज्यों के अधिकार क्षेत्र में दखल दे रही है और भाषा को लेकर उनके फैसलों पर असर डालने की कोशिश कर रही है।
सरकार का पक्ष क्या है?
सरकार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि नई शिक्षा नीति किसी भी भाषा को अनिवार्य नहीं बनाती है। छात्रों को उनकी सुविधा के अनुसार भाषा चुनने की आजादी दी गई है। साथ ही, मातृभाषा में पढ़ाई कराने से बच्चों की बौद्धिक क्षमता बेहतर होगी और वे विषयों को अधिक अच्छे से समझ पाएंगे।
क्या हो सकता है समाधान?
- सरकार को ये स्पष्ट करना होगा कि हिंदी को अनिवार्य नहीं बनाया जाएगा, बल्कि सभी भाषाओं को समान रूप से महत्व दिया जाएगा।
- राज्यों को अपने हिसाब से भाषा नीति लागू करने की छूट मिलनी चाहिए।
- अंग्रेजी और अन्य विदेशी भाषाओं को सीखने के लिए भी पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
नई शिक्षा नीति का उद्देश्य देश में शिक्षा प्रणाली को अधिक समावेशी और व्यावहारिक बनाना है। हालांकि, भाषा के मुद्दे पर विवाद ने इसे राजनीतिक और सांस्कृतिक बहस का विषय बना दिया है। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस विवाद को कैसे हल करती है और नई नीति को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए क्या कदम उठाती है।