महात्मा गांधी अक्सर गीता के श्लोक और भजन गाते हुए देखे जाते थे। उनका प्रिय श्लोक था:
“अहिंसा परमो धर्मः।
धर्म हिंसा तदैव च।”
इसका अर्थ है कि अहिंसा इंसान का सबसे बड़ा धर्म है, लेकिन धर्म की रक्षा के लिए की गई हिंसा उससे भी श्रेष्ठ है। Mahatma Gandhi Ji के जीवन और विचारों में ये श्लोक उनकी अहिंसा की नीति का आधार रहा, हालांकि इसका पूर्ण अर्थ संदर्भानुसार बदल जाता है।
गांधीजी और रघुपति राघव राजाराम भजन
गांधीजी का प्रिय भजन था:
“रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम।
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सब को सन्मति दे भगवान।”
क्या आप जानते हैं? “अल्लाह” शब्द गांधी जी ने अपनी ओर से इस भजन में जोड़ा था। इस भजन के मूल रचयिता पंडित लक्ष्मणाचार्य थे। मूल भजन हिंदू ग्रंथ “श्री नमः रामनायनम” से लिया गया है, और इसका पारंपरिक स्वरूप इस प्रकार है:
“रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम।
सुंदर विग्रह मेघाश्याम, गंगा तुलसी शालीग्राम।
भद्रगिरीश्वर सीताराम, भगत-जनप्रिय सीताराम।
जानकीरमणा सीताराम, जय जय राघव सीताराम।”
फिल्म और मूल भजन का संदर्भ
1948 में आई फिल्म “श्री राम भक्त हनुमान” में भी इस भजन का मूल स्वरूप प्रस्तुत किया गया है। फिल्म के वीडियो में “अल्लाह” शब्द का कोई उल्लेख नहीं है। ये दिखाता है कि ये शब्द बाद में गांधी जी ने जोड़ा था, हो सकता है उनकी धर्मनिरपेक्ष सोच और सांप्रदायिक सौहार्द के संदेश के लिए ऐसा किया गया हो।
भजन के गाने में हो रही त्रुटियां
आज के समय में, कई मंदिरों और मंचों पर इस भजन को गलत ढंग से गाया जाता है। ये दुख की बात है कि मूल भजन को सही रूप में प्रस्तुत करने के प्रति जागरूकता कम है। इसलिए अक्सर लोग सोशल मीडिया पर या फिर अलग-अलग तरह के कार्यक्रम में ये गलती कर रहे हैं।
यदि आप भी इस गलती से अंजान थे तो इसे शेयर करके हमारा मनोबल बढ़ाएं। इससे आने वाली हमारी पीढ़ी को सही जानकारी मिल सकेगी। गलत जानकारी के प्रसारण की वजह से लोग इस बड़े सच से आज तक अनजान हैं।