करीब तीन महीने पहले उत्तर प्रदेश के संभल जिले में मंदिर और मस्जिद को लेकर विवाद शुरू हुआ। ये विवाद शाही जामा मस्जिद को लेकर है। 19 नवंबर 2024 को जिला अदालत में एक याचिका दाखिल की गई, जिसमें दावा किया गया कि ये मस्जिद नहीं, बल्कि श्रीहरिहर मंदिर है। उसी दिन कोर्ट के आदेश पर मस्जिद का सर्वेक्षण हुआ।
सर्वे के बाद बढ़ा विवाद
पहला सर्वे शांतिपूर्ण तरीके से पूरा हुआ, लेकिन 24 नवंबर को जब टीम फिर से सर्वे करने पहुंची, तो हिंसा भड़क उठी। इस हिंसा में पांच लोगों की जान चली गई। इसके बाद सर्वे रोक दिया गया। प्रशासन ने संभल में अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाया, जिससे पुराने मंदिरों, बावड़ियों और कुओं का पता चला।
अब 8 जनवरी 2025 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला अदालत में चल रहे इस मामले की सुनवाई पर रोक लगा दी है।
इतिहास में भी उठा था ऐसा विवाद
संभल में ये पहली बार नहीं है, जब मंदिर-मस्जिद को लेकर विवाद हुआ है। 1878 में भी एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें मस्जिद में केवल प्रवेश की अनुमति मांगी गई थी, पूजा-अर्चना की नहीं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मस्जिद कमेटी के वकील मशहूद अली फारूकी ने बताया कि ये याचिका छेदा सिंह नामक व्यक्ति ने मुरादाबाद कचहरी में दाखिल की थी।
उस वक्त इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दस्तावेजी सबूतों के आधार पर फैसला दिया कि ये स्थान मस्जिद है। न यहां कभी पूजा हुई और न ही कोई मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई।
वर्तमान विवाद और तर्क
हिंदू पक्ष की ओर से महंत ऋषिराज गिरी का दावा है कि संभल भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि का जन्मस्थान है। कैला देवी मंदिर के महंत का कहना है कि “संभल का त्रिकोणीय मानचित्र इस बात का सबूत है कि मस्जिद असल में एक मंदिर है।” उन्होंने स्कंद महापुराण का हवाला देते हुए कहा कि इसमें संभल के तीर्थों का उल्लेख है।
याचिकाकर्ता हरिशंकर जैन ने अपनी याचिका में “बाबरनामा” का जिक्र किया है, जो मुगल शासक बाबर के शासनकाल का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इसमें संभल की जामा मस्जिद का उल्लेख होने का दावा किया गया है।
बाबरनामा और इतिहासकारों की राय
बाबरनामा को ब्रिटिश ओरिएंटलिस्ट एनेट बेवरेज ने ट्रांसलेट किया था। उनके अनुसार, बाबर ने हिंदू बेग को संभल का प्रशासक नियुक्त किया और मस्जिद बनवाने का आदेश दिया। हालांकि, अमेरिकी इतिहासकार हावर्ड क्रेन ने 1987 में अपने पेपर “Petronage of Zahir al-Din Babur” में लिखा कि बाबरनामा में संभल की मस्जिद का उल्लेख नहीं है।
क्या होगा आगे?
इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद फिलहाल मामले की सुनवाई रुक गई है। लेकिन सवाल अब भी कायम हैं: क्या शाही जामा मस्जिद पहले एक मंदिर थी, या ये मस्जिद ही थी? इस विवाद का समाधान कब और कैसे होगा, ये देखना बाकी है।