भारत में आपातकाल (Emergency 1975) को भारत के इतिहास में एक ऐसा समय माना जाता है जब निरंकुश शक्ति का दमन शुरू हो गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने 25 जून 1975 को ये निर्णय लिया, जिसे राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने मंजूरी दी। इसे “Article 352: राष्ट्रीय संकट के कारण राष्ट्रपति की घोषणा” के तहत मान्यता दी गई थी।
आपातकाल कितने साल का था?
इस आपातकाल की घोषणा 25 जून 1975 को की गई थी और इसे 21 महीनों (और 7 दिनों) तक बरकरार रखा गया। तदनुसार इसे 21 जुलाई 1977 को समाप्त किया गया, जब जनता ने लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी को शिकस्त दी।
आपातकाल क्यों लगाया गया था?
- संवैधानिक संकट: 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनावी भ्रष्टाचार (वोट खरीद-उत्पादन का आरोप) में दोषी माना और ज़िला कोलकाता विधानसभा चुनाव से अमान्य कर दिया।
- राजनीतिक विरोध: जयप्रकाश नारायण और उनके नेतृत्व में सत्याग्रह आंदोलन तथा जनता दल, आर्थिक असंतोष और भ्रष्टाचार की जमकर आलोचना कर रहे थे।
- “राष्ट्रीय अव्यवस्था” का दावा: सरकार ने इसे राजनीतिक अस्थिरता, क्षेत्रीय अशांति और आर्थिक संकट की बड़ी समस्या बताया, इसलिए इसे विकट परिस्थिति करार दिया गया।
आपातकाल में कितने नेता जेल गए?
केंद्र सरकार ने गृह सचिव आर.के. धवन की सिफारिश पर कई नेता, पत्रकार, विचारक चुनिंदा बंदी बनाए। समिश्रित आंकड़ों के अनुसार:
- राजनीतिक विरोधी नेताओं में जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मोरारजी देसाई, शिवराज विंग और अन्य 25–30 प्रमुख नेता शामिल थे।
- पत्रकारों और एक्टिविस्ट भी निशाने पर थे – कई न्यूज-पब्लिशर निलंबित हुए।
- टैक्स और प्रेस ब्रेकिंग कानूनों के तहत अनुमानित 30 हजार से अधिक लोग गिरफ्तार हुए।
आपातकाल के बाद किसकी सरकार बनी?
21 महीनों बाद 1977 के चुनावों में जनता पार्टी ने कांग्रेस को भारी अंतर से हराया:
- जनता दल ने जीत हासिल की, जो दमित नेताओं का गठजोड़ था – अटल बिहारी वाजपेयी, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह आदि की अगुवाई में।
- अटल बिहारी वाजपेयी ने 3 दिन प्रधानमंत्री बने, इमरजेंसी विरोधी सभ्य झुकाव के कारण मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया।
इस अवधि में कितने लोगों की मौत हुई?
Emergency 1975 के दौरान सरकारी आंकड़ें अस्पष्ट हैं, लेकिन विभिन्न मानवाधिकार संगठनों और पत्रकारों के अनुसार हजारों ज़मान्त हुई, कई जेल में मारे गए या प्रताड़ित हुए।
सोशल कार्यकर्ताओं और छोटे किसानों में आत्महत्याओं की घटनाएँ बढ़ीं और मर्यादित, सुनियोजित दमन हुआ – बलपूर्वक नसबंदी, बड़ी संख्या में/IP/violations | गुंडे कानून आदि के तहत मानवाधिकार नष्ट करने की कोशिश की गई।

आपातकाल के प्रमुख विद्रोही आंदोलन:
- जयप्रकाश नारायण (JP आंदोलन): लोकतंत्र की रक्षा हेतु तीव्र आंदोलन।
- किसान सशक्तिकरण: “अल्पसंख्यकों” की पहचान व विकास मांग।
- न्यायिक पुनरावृति: इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले की राजनीतिक दुष्प्रचार का विरोध।
- मुक्त प्रेस और जन-मत मानस स्वाधीनता की रक्षा हेतु दमन विरोधी आंदोलन।
आपातकाल का असर लोकतंत्र पर:
- लोकतंत्र पर दमन: प्रेस, भाषण और आंदोलनों से स्वतंत्रता क्षतिग्रस्त हुई।
- न्यायपालिका पर अवैध नियंत्रण: मुख्य न्यायाधीश पदस्थापन पर प्रभाव; संवैधानिक मर्यादा कमजोर।
- जनतांत्रिक पुनर्स्थापना: 1977 के चुनावों में भाजपा और जनता दल की जीत के जरिए लोकतंत्र मजबूत हुआ।
- संवैधानिक सुधार: 44वां संशोधन लागू हुआ, जिसने Article 352 को तीखा बनाया, और आपातकाल के दुरुपयोग की रोक लगाई गई।
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Emergency 1975 से सबक
- लोकतंत्र की जागरूकता: आम नागरिकों में लोकतंत्र की असली मर्यादा की जानकारी बढ़ी।
- PRESS स्वतंत्रता की अहमियत: इमरजेंसी ने यह स्पष्ट किया कि लोकतंत्र के लिए प्रेस स्वतंत्रता क्यों जरूरी है।
- जनतंत्र की जीत: लोकतंत्र ने अपने खेल नियमों की पुन: पुष्टि की – कलंकित दौर के अनुदान के बावजूद पुनः लोकतंत्र ने आपनी शक्ति दिखाई।
Emergency 1975 भारतीय लोकतंत्र में एक काले अध्याय जैसा रहा, लेकिन इसके खत्म होने के बाद लोकतंत्र की पुनरावृत्ति हुई और संवैधानिक मर्यादा मजबूत हुई। ये घटना हमें उस समय के नागरिक और पत्रकारों की सच्ची वीरता का पाठ पढ़ाती है, जिन्होंने साहसपूर्वक अत्याचार का विरोध किया और लोकतंत्र को बचाया।
आज की पीढ़ी को याद रखना चाहिए: लोकतंत्र की रक्षा सिर्फ अधिकार लेने से नहीं, बल्कि सरकार के दमन से कसने की आग के सामने संतुलन बनाए रखने की क्षमता से भी होती है।



