चाणक्य अपनी नीति शास्त्र के लिए जाने जाते थे | दूर दूर तक विदेशों में लोग उनकी नीतियों का लोहा मानते थे| यही सुनकर एक बार, एक चीनी दर्शनिक चाणक्य से मिलने भारत आया| जब वह चाणक्य के घर उनसे मिलने पहुँचा तो उसने देखा कि चाणक्य एक ग्रंथ लिखने में व्यस्त थे| उन दिनों बिजली या बल्व नहीं हुआ करते थे| चाणक्य ने तेल भरी डिबिया जला रखी थी और उसी की धीमी रोशनी में वो लिखने में व्यस्त थे |nचाणक्य ने जैसे ही आगंतुक को देखा| उन्होने जल्दी से अपना कार्य समाप्त किया और जो डिबिया अभी जल रही थी उसे बंद कर दी और एक नई डिबिया जला दी| दार्शनिक ने सोचा कि ये भारतीय लोगों का आगंतुक का सम्मान करने का कोई रिवाज़ होता होगा| उसने जिग्यसावश चाणक्य से पूछा कि आप ने जलती डिबिया को बंद क्यूँ किया और फिर से नई डिबिया जलाने के पीछे क्या कारण है? क्या यह आपके धर्म में कोई रिवाज़ हैं? चाणक्य ने हँसते हुए जवाब दिया, नहीं श्रीमान यह कोई रिवाज़ या धर्म का हिस्सा नहीं था |nचाणक्य ने कहा कि मैं एक ग्रंथ का स्रजन कर रहा था और उस डिबिया के तेल का जो पैसा है वो मुझे राजकोष से मिला है लेकिन जब मैंने लिखने का कार्य समाप्त किया तो उस डिबिया का जलना मेरे देश की संपत्ति का नाश है, जो मैं कभी नहीं सह सकता और इस दूसरी डिबिया में जो तेल है वो मेरी खुद की कमाई से खरीदा हुआ है| मैं अपने स्वयं के कार्य के लिए देश की संपत्ति का हनन नहीं कर सकता|nइतना सुनकर चीनी दार्शनिक चाणक्य के आगे नतमस्तक हो गया कि धन्य है ये देश भारत जहाँ इतनी महान सोच वाले व्यक्ति रहते है| इसीलिए भारत को जगद गुरु कहने में कोई दोराय नहीं है|nअगर कोई इंसान चाणक्य के बताये हुए मार्ग पर चले तो उसे दुनियाँ की कोई भी परेशानी सफल होने से नहीं रोक सकती।