देश की सर्वोच्च न्यायालय में अक्सर ऐसे केस आते रहते हैं जो चर्चाओं का विषय बनते हैं, तो कुछ केसों में अदालत के फैसलों को सदियों तक याद किया जाता है जिन फैसलों की कई अन्य अदालतों में भी मिसाल दी जाती है.. आज कुछ ऐसा ही एक मामला सुप्रीम कोर्ट में फिर आया जिससे चीफ जस्टिस भी सोचने को मजबूर हो गए और मामले की सुनवाई के बाद विचार करने की बात कह दी. nक्या है ये मामला ? nये मामला केरल की एक महिला का है जो धार्मिक रूप से मुस्लिम है लेकिन इस्लाम में यकीन नहीं रखती हैं उन्होने सुप्रीम कोर्ट में उत्तराधिकार की मांग करते हुए कहती है कि उन्हें भी उनकी संपत्ति में हिन्दू अधिनियम के जैसे अधिकार चाहिए, मतलब बराबर की हिस्सेदारी. इस मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट में ऐसी दलीलें दी कि Chief Justice DY Chandrachud मामले में विचार करने के लिए तैयार हो गए. nइस्लाम धर्म में आस्था नहीं nकेरल की महिला का नाम सफिया है, उनके पुर्खों ने इस्लाम कुबूल किया था लेकिन उनके पिता के समय से उनका परिवार इस्लाम में नहीं मानता, इस्लाम धर्म में आस्था छोड़ दी है. इन्हें पूर्व मुस्लिम भी कहा जाता है. महिला ने एक PIL के जरिए कहा कि उन्होने आधिकारिक तौर पर इस्लाम नहीं छोड़ा है मगर वे इस्लाम में आस्था भी नहीं रखती. nमहिला ने संविधान के अनुच्छेद 25 का जिक्र किया जो धार्मिक स्वतंत्रता की आजादी का अधिकार देता है. महिला के अमुसार उसके पिता भी इस्लाम में नहीं मानते इसलिए वे भी शरिया के अनुसार वसियत नहीं लिखना चाहते. nINDIAN SUCCESSION ACT 1925 nलेकिन मुश्किल ये है कि इस्लाम धर्म में जन्मे किसी भी शख्स को उत्तराधिकार या संपत्ति में हिस्सा शरिया के अनुसार ही मिलता है जो पुरुषों को ज्यादा और महिलाओं को कम है, यानी कि महिला को धर्मनिरपेक्षता के कानून के अनुसार लाभ नहीं मिलेगा. हालांकि इस मामले में महिला INDIAN SUCCESSION ACT 1925 के तहत उत्तराधिकार चाहती है. nसफिया के वकील ने कोर्ट से क्या कहा nसफिया के वकील ने मामले में कोर्ट से कहा कि ‘याचिकाकर्ता का भाई एक अनुवांशिक मानसिक बीमारी डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त है. उनकी एक बेटी भी है. पर्सनल लॉ यानी इस्लामिक उत्तराधिकार कानून के तहत उनके भाई को संपत्ति का दो-तिहाई हिस्सा मिलेगा, जबकि याचिकाकर्ता को सिर्फ एक तिहाई’. nसफिया ने वकील ने अदालत से ये भी अनुरोध किया कि अदालत को ये एलान करना चाहिए कि याचिकाकर्ता मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा शासित नहीं है. वरना उसके पिता उसे संपत्ति का एक तिहाई से अधिक नहीं दे पाएंगे. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि वो इसकी घोषणा कैसे कर सकते हैं? आपके अधिकार या हक आस्तिक या नास्तिक होने से नहीं मिलते, बल्कि ये अधिकार आपको आपके जन्म से मिले हैं. अगर मुसलमान के रूप में पैदा होते हैं, तो आप पर मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू होगा.nअब इस मामले की अगली सुनवाई जुलाई के दूसरे हफ्ते में यानी गर्मी की छुट्टियों के बाद निर्धारित की गई है. ध्यान देने वाली बात ये है कि कोर्ट किसी भी पर्सनल लॉ में सीधे हस्तक्षेप नहीं करती.