जब भारत ने हाईजैक कराया अपना प्लेन! वो भी बांग्लादेश के लिए...

When India hijacked its plane for the independence of Bangladesh. जब बांग्लादेश की आजादी के लिए भारत ने हाईजैक कराया था अपना प्लेन.

जब भारत ने हाईजैक कराया अपना प्लेन! वो भी बांग्लादेश के लिए...

जनवरी की एक ठंडी सुबह है और पूरा कश्मीर बर्फ की चादर से ढका हुआ था...दो युवक हाथ में एक अटैची लिए 26 यात्रियों के साथ श्रीनगर हवाई अड्डे से जम्मू जानें के लिए एक छोटे फ़ोकर विमान में सवार होते हैं. प्लेन उड़ता है और धीरे-धीरे अपनी डेस्टिनेशन यानी गंतव्य की ओर बढ़ने लगता है...लैंडिंग से कुछ ही समय पहले, एयर होस्टेस सभी यात्रियों से अपनी सीट बेल्ट बांधने के लिए कहती हैं. लेकिन उसी समय, उनमें से एक युवक कॉकपिट में घुस कर, कप्तान के सिर पर पिस्तौल रख देता है...इसके बाद उस प्लेन की लैंडिंग होती है, पाकिस्तान के लाहौर में.

दरअसल, भारत का ये प्लेन हाईजैक हो चुका था....लैंडिंग होते ही कॉकपिट से एक शख्स उतरता है. फिर एक-एक कर 26 भारतीय यात्रियों को बाहर निकालर प्लेन में आग लगा दी जाती है. इस घटना को लेकर पाकिस्तान में जश्न का माहौल था. हाईजैकर्स को देखने के लिए लोगों का तांता लग गया. इतना ही नहीं पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो भी खुद एयरपोर्ट पहुंचे और दोनों हाईजैकर्स से मुलाकात की. प्लेन हाईजैक करने वाले दोनों लोग रातों-रात पाकिस्तान में हीरो बन गए. 

फिर वक्त ने करवट ली. इस घटना के एक साल बाद दोनों कठघरे में खड़े थे. पाकिस्तान हाई कोर्ट में उन पर जासूसी का केस चल रहा था. पाकिस्तान जिन्हें हीरो समझ रहा था. वो मुल्क के दो टुकड़े करवाने वाले थे. असल में ये भारत की खुफिया एजेंसियों का रचा एक खेल था. जिससे वो बांग्लादेश में विद्रोह के दौरान पाकिस्तानी विमानों को भारत पर उड़ान भरने से रोकना चाहते थे. जासूस खिलाड़ियों के इस खेल से भारत ने पाकिस्तान को ऐसी मात दी, जिससे वो 16 दिसंबर 1971 को जंग हार गया. पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को भारत के सामने घुटने टेकने पड़े...आइए आपको पूरा खेल समझाते हैं....

1960 के दशक के आखिर में पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में गृह युद्ध जैसे हालात बनने लगे थे. बांग्ला बोलने वाले पूर्वी पाकिस्तान के लाखों लोग शेख मुजीबुर्रहमान रहमान की अगुआई में पश्चिमी पाकिस्तान के दबदबे के खिलाफ आवाज उठाने लगे थे. 1970 के चुनाव में शेख मुजीबुर्रहमान की आवामी लीग पार्टी को बहुमत मिला, लेकिन जनरल याह्या खान उन्हें कुर्सी देने को तैयार नहीं हुए. जुल्फिकार अली भुट्टो भी उनके साथ थे. वहीं दूसरी तरफ, पाकिस्तान की शह पर नेशनल लिबरेशन फ्रंट नाम का अलगाववादी संगठन किसी तरह से कश्मीर के मुद्दे को दुनिया के सामने उछालना चाहता था. इसी कवायद में उसके नेता मकबूल भट्ट की मुलाकात होती है 17 साल का हाशिम कुरैशी और 19 साल का अशरफ कुरैशी से.

हाशिम कश्मीर में भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ यानी रिचर्स एंड एनालिसिस विंग का जासूस था. उसे आतंकियों की जासूसी के लिए ही भेजा गया था, लेकिन हुआ उल्टा. वो डबल एजेंट बन गया और भारत का जासूस बनकर पाकिस्तान की ISI के लिए जासूसी करने लगा. इसी दौरान 1971 में मकबूल भट्ट ने उसे भारत के एक पैसेंजर प्लेन हाईजैक करने का जिम्मा सौंपा. पाकिस्तान ऐसा इसलिए कर रहा था, ताकि कश्मीर समस्या को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पब्लिसिटी मिले. हाशिम को प्लेन हाईजैक करने की ट्रेनिंग दी गई. उसे पिस्तौल चलाना और बम बनाना भी सिखाया गया. इसके बाद वो पाकिस्तान से एक पिस्तौल और एक हेंड ग्रेनेड के साथ श्रीनगर के लिए रवाना हुआ. लेकिन, भारत की इंटेलिजेंस एजेंसियों को इसकी भनक लग गई. हाशिम PoK से कश्मीर में घुसपैठ करने के दौरान BSF के हाथ लग गया. भारतीय एजेंसियों ने जब हाशिम से पूछताछ तो उसने सारी कहानी उगल दी. 

इसके बाद भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसियों ने हाशिम के सामने एक प्रस्ताव रखा. उससे कहा गया कि, अगर वो भारत की बात मानेगा तो उसे देश से की गई गद्दारी की सजा नहीं मिलेगी. ऐसे में जान बचाने के लिए हाशिम ने इस प्रस्ताव को मान लिया. फिर हाशिम के डबल एजेंट होने का फायदा उठाते हुए उस समय के रॉ के चीफ रामेश्वर नाथ काओ ने एक मास्टर प्लान तैयार किया.

इसके बाद हाशिम से कहा गया कि, वो भारतीय प्लेन हाईजैक करने के पाकिस्तानी प्लान को भारत की शर्तों पर आगे बढ़ाए. वो प्लेन को अपने तय प्लान के मुताबिक हाईजैक करके लाहौर ले जाए. लाहौर एयरपोर्ट पहुंचते ही सबसे पहले PM जुल्फिकार अली भुट्टो को बुलाए. ऐसा इसलिए ताकि दुनिया के सामने ये साबित हो जाए कि, प्लेन को पाकिस्तान के कहने पर ही हाईजैक किया गया है. पूरे प्लान को सीक्रेट रखने के लिए हाशिम को बैंगलोर में रखा जाता है.

प्लेन हाईजैक करने के लिए 30 जनवरी 1971 की तारीख तय हुई. समय के मुताबिक हाशिम और उसका एक और साथी अशरफ एयरपोर्ट पहुंचे. फिर दोनों ने प्लान के मुताबिक दूसरे विमान को हाईजैक करने का फैसला किया. जो प्लेन चुना गया उसका नाम था, गंगा. ये काफी पुराना प्लेन था और काफी पहले ही इस्तेमाल से बाहर किया जा चुका था, लेकिन हाईजैक करने से ठीक पहले इसे दुबारा इंडियन एयरलाइंस में शामिल किया गया.

श्रीनगर के एयरपोर्ट से जैसे ही प्लेन टेक ऑफ किया, हाशिम ने पायलट की कनपटी पर एक टॉय गन यानी नकली पिस्तौल तान दी. हाशिम ने पायलट से कहा कि, वो प्लेन को लाहौर के लिए डायवर्ट करे. उधर लाहौर में जैसे ही सूचना मिलती है कि प्लेन को PoK के नेशनल लिबरेशन फ्रंट के लोगों ने हाईजैक किया है, वे फौरन प्लेन को लैंड करने की परमिशन दे देते हैं. 

लैंडिंग के बाद भारत से 36 कश्मीरी अलगाववादियों को रिहा करने की मांग की जाती है. लेकिन, भारत ने अलगाववादियों को छोड़ने से इनकार कर दिया. फिर हाशिम और अशरफ ने एक-दूसरे से सलाह-मशविरा किया और लैंडिंग के दो घंटे के अंदर ही महिलाओं और बच्चों को छोड़ दिया. शाम तक बाकी लोगों को भी रिहा कर दिया गया. 

उधर, इंदिरा गांधी की सरकार ने हाइजैकिंग का हवाला देते हुए 4 फरवरी 1971 को पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) जाने वाले पाकिस्तानी प्लेन पर रोक लगाने के लिए भारत ने अपने हवाई क्षेत्र के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी, जो 1976 तक जारी रही. पाकिस्तान पर यह पाबंदी ऐसे समय में लगी, जब पूर्वी पाकिस्तान में अलगाववादी आंदोलन तेज हो रहा था. उस वक्त पाकिस्तानी सैनिक बड़ी तादाद में ईस्ट पाकिस्तान (बांग्लादेश) भेजे जा रहे थे, ताकि वहां विद्रोह को कुचला जा सके.

पाबंदी के चलते पाकिस्तानी विमानों को हिंद महासागर के ऊपर से होते हुए रिफ्यूलिंग के लिए पहले श्रीलंका ले जाता था, फिर पूर्वी पाकिस्तान पहुंचता था. जिससे समय और पूंजी दोनों की बर्बादी होती थी. भारत की ये चाल 1971 की जंग में कामयाब साबित हुई. इससे बांग्लादेश में लाखों लोगों की जान बची जो पाकिस्तानी बमबारी में मारे जाते.

भारत ने मुक्तिवाहिनी को मदद देना शुरू किया. अक्टूबर तक मुक्तिवाहिनी विद्रोहियों के सामने पाकिस्तान को कड़ी चुनौती देने लगी थी. 6 अक्टूबर को भारत के समर्थन से मुक्तिवाहिनी ने पाकिस्तान के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई लड़ी. इममें पाकिस्तान के 500 से ज्यादा सैनिक मारे गए. इसके लगभग 2 महीने बाद ही भारत खुलकर बांग्लादेश की तरफ से जंग में कूद पड़ा. 13 दिन में ही जंग अंजाम तक पहुंच गई. भारत ने 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया.

वहीं, हाशिम कुरैशी को जासूसी के जुर्म में 9 साल पाकिस्तानी जेल में रहना पड़ा. साल 2000 में कुरैशी भारत आया, तो उसे पाकिस्तानी एजेंट होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. एक इंटरव्यू में कुरैशी का कहा था कि वो किसी देश का एजेंट नहीं था. उसने दोनों देशों का इस्तेमाल अपने मकसद के लिए किया.