धारा-370 हटने से कितना बदला कश्मीर? आंकड़ों से समझें कहानी

Know how much riots and terrorist incidents have reduced in Kashmir after the removal of Article 370. जानें धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में दंगों और आतंकी घटनाओं में कितनी कमी आई है.

धारा-370 हटने से कितना बदला कश्मीर? आंकड़ों से समझें कहानी

केंद्र ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने का जो फैसला लिया था वो बरकरार रहेगा. सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने सोमवार को इस पर मुहर लगाई. जजों ने तर्क दिया कि आर्टिकल 370 एक अस्थायी प्रावधान था. केंद्र के इस फैसले के खिलाफ 23 याचिकाएं दायर की गई थीं, जिसकी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया. केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाया था.

केंद्र सरकार इसके कई फायदे गिना चुकी है. लोकसभा में, कोर्ट में सुनवाई के दौरान और गृहमंत्री अमित शाह ने जो आंकड़े पेश किए उसमें बताया गया है कि इसे हटाने से पहले और अब यानी 2023 तक कितना फर्क दिखा. आइए इसे आंकड़ों से समझते हैं.

पत्थरबाजी से हड़ताल तक

जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाएं आम रही हैं, लेकिन आर्टिकल 370 हटने के बाद इसमें कितना बदलाव आया, इसकी जानकारी सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दी है. सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट में कहा कि 2018 में यहां पत्थरबाजी की 1767 घटनाएं दर्ज की गईं, वहीं, 2023 में यह आंकड़ा जीरो तक पहुंच गया. यानी यहां एक भी ऐसी घटना नहीं घटी.

2021 तक के गृह मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 2019 में जनवरी से जुलाई के बीच पत्थरबाजी के 618 मामले दर्ज किए गए. वो जनवरी से जुलाई 2020 के बीच घटकर 222 रह गए. वहीं, 2021 के शुरुआती 7 महीनों में ऐसी घटनाओं की संख्या घटकर 76 रह गई.

2018 तक अक्सर बंदी और हड़ताल के मामले अक्सर सामने आते थे, लेकिन अब उसमें कितना बदलाव आया है, इस सवाल का जवाब सॉलिसिटर जनरल ने दिया है. उनका कहना है कि 2018 में बंद और हड़ताल की 52 घटनाएं हुईं. 2023 में यह आंकड़ा शून्य हो गया. इस साल यहां ऐसी एक भी घटना नहीं हुई.

केंद्र का कहना कि, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में पिछले चार वर्षों में डेवलपमेंट, प्रशासन और सुरक्षा सहित कई मामले में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं. जिसका सकारात्मक असर वहां के हर निवासी और हर जाति-धर्म पर पड़ा है.

आतंकी घटनाओं और मौतों में कितनी गिरावट?

गृहमंत्री अमित शाह ने 6 दिसंबर को दावा किया था कि, 2004-2014 (UPA) की तुलना 2014-2019 (NDA) से करें तो आतंकी घटनाओं में 70 फीसदी की कमी आई है. वहीं, जम्मू-कश्मीर में होने वाली आम नागरिकों मौतों का आंकड़ा 59 फीसदी तक घटा है.पेलेट गन और लाठीचार्ज के कारण नागरिकों की चोटों में सबसे ज्यादा गिरावट देखी गई. जनवरी-जुलाई 2019 में ऐसी घटनाओं में 339 नागरिक घायल हुए. वहीं, 2021 में यह संख्या घटकर मात्र 25 रह गई.

कितनी घटी आतंकियों की घुसपैठ?

उन्होंने यह भी दावा किया कि 2010 में कश्मीर में 132 संगठित हमले हुए थे, जबकि 2023 में कोई भी ऐसी घटना नहीं दर्ज की गई. आंकड़े बताते हैं कि 5 अगस्त 2019 के बाद से आतंकी घटनाओं में 32 फीसदी की गिरावट आई. इतना ही नहीं सुरक्षा बलों की मौतों के आंकड़े का ग्राफ गिरकर 53 फीसदी तक पहुंच गया. वहीं आम नागरिकों की मौत में 14 फीसदी की कमी आई. राज्य में आतंकियों की घुसपैठ 14 फीसदी तक घटी. 2019 में आतंकियों की घुसपैठ का आंकड़ा 141 था, जो 2023 में घटकर 48 रह गया है.