गांव का अहसास दिलाती है, बॉलीवुड की ये खास फिल्मे

हमारे देश की पहचान गांव और यहां रह रह लोगों से होती है. गांव हमारी संस्कृति की धरोहर है, जिसे हमेशा सहज कर रखना चाहिए. गांव की जीवनशैली शहर से एकदम अलग होती है.

गांव का अहसास दिलाती है, बॉलीवुड की ये खास फिल्मे 

हमारे देश की पहचान गांव और यहां रह रह लोगों से होती है. 

गांव हमारी संस्कृति की धरोहर है, जिसे हमेशा सहज कर रखना चाहिए

गांव की जीवनशैली शहर से एकदम अलग होती है. 

1947 में मिली स्वतंत्रता के बाद भारत को एक राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत करती है फिल्म 'मदर इंडिया' जो 1957 में रिलीज हुई थी. 

साल 1966 में आई फिल्म 'तीसरी कसम' में गांव की स्टोरी दिखाई गई है. 

कितने आदमी थे' इस डाइअलॉग को कोई कैसे भूल सकता है, फिल्म 'शोले में गांव की छोटी गलियों को दिखाया गया है. 

साल 1978 में आई फिल्म 'सत्यम शिवम सुंदरम' का 'सत्यम शिवम सुंदरम' गाना लोग आज भी गुनगुनाते है, 

साल 1982 में आई फिल्म 'नदियों के पार' गांव की संस्कृति को बहुत अच्छे से फिल्माया गया है. 

2001 में आई फिल्म 'लगान' में अंग्रेजों के नीचे दबे गांव को दिखाया गया है. 

साल 2004 में आई शाहरुख खान की फिल्म 'स्वदेश' में गांव की जीवनशैली को बखूबी दिखाया गया है. 

साल 2006 में अजय देवगन की 'ओमकारा फिल्म गांव में हो रहे क्राइम को दिखाया गया है. 

साल 2006 में आई हसी से गुदगुदाने वाली फिल्म 'मालामाल वीकली' में भी गांव की छोटी गलियों में साइकिल से आते-जाते लोगों लो दिखाया गया है. 

'पहेली', 'गुरु', 'दो बीघा जमीन', 'मेरा गांव मेरा देश', 'पान सिंह तोमर' जैसी फिल्मों में गांव की माटी में फिल्माया गया है.