कुछ जानवरों में हंसी-मज़ाक़ की आदत कैसे विकसित हो गई?

कुछ जानवरों में हंसी-मज़ाक़ की आदत कैसे विकसित हो गई?

हमें लगता है कि हंसी-मज़ाक़ करने की आदत एक ऐसी ख़ूबी है, जो सिर्फ़ इंसानों में पाई जाती है. लेकिन, कुछ जानवर भी ऐसे हैं जो हंसी-मज़ाक़ या मसखरी के ज़रिए अपने बीच के रिश्तों को मज़बूती देते हैं.

जब आप ये सोचते हैं कि वो कौन सी ख़ूबी है, जो हमारी प्रजाति को दूसरे जानवरों से अलग करती है, तो शायद अंतर वाली इस फ़ेहरिस्त में हंसी-मज़ाक़ करने की आदत सबसे ऊपर आती है.

हमें हंसना पसंद है. इस हद तक कि कॉमेडी का लुत्फ़ उठाना मानो हमारी नस्ल की रगों में समाया हुआ है. जिन नवजात बच्चों को इस दुनिया में आए हुए महज़ तीन महीने बीते होते हैं, वो भी खिलखिलाते हैं. जब उनके मां-बाप मज़ाक़िया चेहरे बनाते हैं, तो छोटे बच्चों तक को बहुत मज़ा आता है. आठ महीने का होते होते नवजात बच्चे ख़ुद अपनी शक्ल, बदन और आवाज़ का ऐसा इस्तेमाल करना सीख जाते हैं, जिससे बड़ों को भी हंसी आ जाए.

हालांकि, एक नई स्टडी में पता चला है कि इस धरती पर किसी से हंसी मजाक़ करने के मामले में इंसानी नस्ल अकेली नहीं है. कई जानवर भी आपस में शरारतें करते हैं. एक दूसरे से मसखरी करते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया लॉस एंजेलिस की रिसर्चर इज़ाबेल लॉमर ने अपने साथियों के साथ मिलकर बड़े बंदरों के बीच आपसी बर्ताव और हरकतों के 75 घंटों के वीडियो देखे.

इसके बाद बहुत जल्दी ही मां-बाप ये महसूस करते हैं कि उनका बच्चा पूरी तरह से मसखरे में तब्दील हो गया है. बच्चे जान-बूझकर ऐसी चीज़ों से खेलना शुरू कर देते हैं, जिनके बारे में उन्हें मालूम होता है कि ऐसा नहीं करना चाहिए और ऐसी शैतानियां करते वक़्त अक्सर बच्चों की शक्ल पर शैतानी मुस्कुराहट तारी होती है.

जानवरों में चिढ़ाने की आदत

इन सभी नस्लों के जानवरों को एक दूसरे से शरारत करते, एक दूसरे को चिढ़ाते हुए देखा गया. रिसर्चरों ने इन ओरांगउटान, चिंपांज़ी, बोनोबोस और गोरिल्ला की एक-दूसरे से शरारत करने वाली 18 अलग-अलग हरकतों को दर्ज किया. इनमें से पांच सबसे ज़्यादा दोहराई गई आदतों में कोंचना, मापना, अपने साथी के आने जाने की राह में अड़ंगा लगाना, अपने बदन को दूसरे पर दे मारना और दूसरों के शरीर के अंगों को खींचना शामिल है.

कुछ जानवरों को तो बार-बार अपने साथियों के चेहरे के सामने अपना शरीर या फिर किसी और चीज़ को हिलाते देखा गया. वहीं कुछ ओरांगउटान बार-बार अपने साथियों के बाल खींचते पाये गए.

कुत्तों को बड़ी तेज़ी से कूदने और फिर अचानक भाग जाने जैसे करतब दिखाने के लिए तैयार किया जा सकता है.

इस स्टडी की लेखिका इज़ाबेल लॉमर कहती हैं, ''हमने इन जानवरों को देखा कि अक्सर कोई किशोर उम्र वाला बंदर उस वक़्त किसी वयस्क के पीछे से अचानक कूद पड़ता था, जब वो अपने साथी के बालों में जुएं तलाश रहा होता था, या फिर दोनों एक साथ बैठे होते थे. कई बार ये किशोर उम्र जानवर अपने से बड़ों को कोंच देते थे या फिर पीठ पर धप्पा मार देते थे और कई बार वो अचानक कूदकर उन्हें चौंका देते थे.''

इज़ाबेल बताती हैं, ''इसके बाद ये छोटे जानवर अपने बड़ों की प्रतिक्रिया का इंतज़ार करते थे. आमतौर पर इस शरारत का शिकार होने वाला बड़ा जानवर बच्चों की हरकतों की अनदेखी कर देता था. फिर वो बार बार वही शरारतें और चिढ़ाने वाली हरकतें दोहराते थे. उनकी हरकतें ऐसी हो जाती थीं, जिनकी अनदेखी कर पाना मुश्किल हो जाता था. कई बार तो ये बच्चे अपने बड़ों के शरीर पर अपना पूरा बदन ही दे मारते थे, ताकि उनका ध्यान अपनी तरफ़ खींच सकें.''

रिसर्चरों के मुताबिक़, ओरांगउटान, गोरिल्ला और चिंपांज़ी जैसे दूसरे जानवरों के बीच चिढ़ाने वाला ये बर्ताव, इंसानों के छोटे बच्चों जैसा ही था. ये हरकतें वो जान-बूझकर, खिझाने और ग़ुस्सा दिलाने के लिए कर रहे थे और वो ऐसा बार-बार, लगातार कर रहे थे. इसमें कई बार चौंका देने वाला खिलंदड़पन शामिल होता था, जिसमें वो अपनी शरारत के शिकार वयस्क जानवर की प्रतिक्रिया का इंतज़ार करते देखे गए.

इसको अगर हम इंसानों के बच्चों के बर्ताव से मिलाएं, तो ऐसा ही है कि कोई बच्चा जीभ निकालकर बड़ों को चिढ़ाए और फिर भाग जाए और देखे कि बड़े उसकी हरकत का क्या जवाब देते हैं.

बहुत से वैज्ञानिकों का मानना है कि जानवरों के बीच ऐसा मसखरापन हमारी जानकारी से कहीं ज़्यादा आम है.