Uttarkashi: क्या है रैट-होल माइनिंग? जिसके जरिए बाहर आ रहे हैं मजदूर

Know what is rat hole mining being done to rescue the workers trapped in Uttarkashi tunnel. जानें क्या है उत्तरकाशी सुरंग में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने के लिए हो रही रैट होल माइनिंग.

Uttarkashi: क्या है रैट-होल माइनिंग? जिसके जरिए बाहर आ रहे हैं मजदूर

उत्तरकाशी में स्थित सिल्क्यारा-बारकोट सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को निकालने की कोशिशों के बीच रविवार, 26 नवंबर को एक और बड़ा झटका लगा, जब मलबे के माध्यम से ड्रिलिंग करने वाली मशीन का ऑगर ज्वाइंट टूट गया. बचाव दल ने पिछले दो दिनों में रेस्क्यू पाइप के अंदर फंसे ब्लेड को काटकर उसे एक-एक करके निकाला. इसके बाद बाकी बचे कुछ मीटर की खुदाई के लिए 'रैट-होल माइनिंग' की योजना बनाई गई. ऐसे में कई लोगों में मन में सवाल उठने लगे कि आखिर ये 'रैट-होल माइनिंग' क्या है, जिसके जरिए मजदूरों को बाहर निकाला जा रहा है. आइए इसे विस्तार से समझते हैं.

क्या है रैट-होल माइनिंग प्रक्रिया?

सबसे पहले हम समझते हैं कि रैट होल माइनिंग क्या है? आपको बता दें कि रैट होल माइनिंग मेघालय में प्रचलित संकीर्ण सीमों से कोयला निकालने की एक प्रक्रिया है, जिसमें 'रैट-होल' शब्द जमीन में खोदे गए संकीर्ण गड्ढों की ओर इशारा करता है. ये आमतौर पर इतना बड़ा होता है कि एक व्यक्ति अंदर उतर सके और कोयला निकाल सके. गड्ढा खोदने के बाद माइनर कोयले की परतों तक पहुंचने के लिए रस्सियों या बांस की सीढ़ियों का उपयोग करके उतरते हैं. फिर कोयले को गैंती, फावड़े और टोकरियों जैसे उपकरणों का उपयोग करके मैन्युअल रूप से निकाला जाता है.

अब ये भी जान लें कि रैट होल माइनिंग की प्रक्रिया दो प्रकार की होती है, जिनमें साइड-कटिंग और बॉक्स कटिंग प्रक्रिया शामिल हैं. साइड-कटिंग प्रक्रिया में पहाड़ी ढलानों पर संकीर्ण सुरंगें खोदी जाती हैं और मजदूर कोयले की परत मिलने तक अंदर जाते हैं. वहीं, बॉक्स-कटिंग में 10 से 100 वर्गमीटर तक की एक आयताकार ओपनिंग की जाती है और उसके माध्यम से 100 से 400 फीट गहरा एक वर्टिकल गड्ढा खोदा जाता है. एक बार कोयले की परत मिल जाने के बाद चूहे के बिल के आकार की सुरंगें हॉरिजॉन्टल रूप से खोदी जाती हैं, जिसके माध्यम से मजदूर कोयला निकाल सकते हैं. अब इस प्रक्रिया का इस्तेमाल कर उत्तरकाशी के टनल से मजदूरों को निकालने की कोशिश पर काम जारी है. माना जा रहा है कि जल्द ही मजदूरों को टनल से सुरक्षित निकाल लिया जाएगा.

कब और क्यों बैन हुई थी ये प्रक्रिया?

अब हम आपको ये भी बताते चलें कि मेघालय में इस प्रक्रिया पर प्रतिबंध है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने साल 2014 में कोयला निकालने के लिए इस प्रक्रिया के इस्तेमाल पर बैन लगा दिया था. इसका कारण ये बताया गया था कि कई ऐसे मामले मिले हैं जिसमें रैट-होल माइनिंग के बाद बारिश के सीजन में गड्ढों में पानी भर जाते हैं. इसके कारण कई कर्मियों और मजदूरों की मौत भी हो जाती है.