45 साल बाद याद आए Zulfikar Ali Bhutto, दी गई फांसी को अब क्यों बताया गलत?

पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट में भुट्टो की फांसी पर सवाल खड़े हो गए हैं और उन्होंने 45 साल बाद भुट्टो को दी गई फांसी को गलत बताया है. Questions have been raised on Bhutto's hanging in the Supreme Court of Pakistan and they have termed the hanging given to Bhutto after 45 years as wrong.

45 साल बाद याद आए Zulfikar Ali Bhutto, दी गई फांसी को अब क्यों बताया गलत?

4 अप्रैल साल 1979, पाकिस्तान की रावलपिंडी जेल, रात के 2 बजे, ये वो समय था जब पाकिस्तान की तवारीख में एक ऐसा शर्मनाक इतिहास जिससे आज भी पाकिस्तानी सेना और उनकी राजनीति के हाथ खून से रंगे हुए हैं. 4 अप्रैल की इस तारीख को रात के 2 बजे पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को हत्या के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई थी. 

लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि ऐसा माना जाता है कि जुल्फिकार अली भुट्टो को जानबूझकर सजा-ए-मौत दी गई, क्योंकि जियाउल हक जो उस समय पाकिस्तानी आर्मी के चीफ थे, उन्होने तख्तापलट किया और भुट्टो को जेल में डाल दिया गया. 

कौन थे जियाउल हक? 

वही जियाउल हक जिन्हें 1976 में भुट्टो ने पाकिस्तान का आर्मी चीफ बनाया था, लेकिन वे उस पद के लिए नाकाबिल थे क्योंकि वे  कई अफसरों से जूनियर थे. उन्ही की कैबिनेट में मंत्री रहे गुलाम मुस्तफा खार ने बताया था कि बाकायदा भुट्टो को आगाह किया गया था कि वह जिया को सेनाध्यक्ष ना बनाएं लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी. 

फांसी को बताया गया गलत 

इसका अंजाम बेहद भयानक था, क्योंकि इतिहासकारों के अनुसार जेल में भुट्टो के मुसलमान होने पर भी शक किया गया था जिसकी वजह से उन्हें अपना खतना जिया के किसी अधिकारी को दिखाना पड़ा था कि उनका खतना हुआ भी है या नहीं. लेकिन सवाल ये है कि साल 1979 में जो कुछ भी हुआ वो एक अतीत था, लेकिन वर्तमान में अतीत की बात क्यों हो रही है?  ऐसा इसलिए क्योंकि पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट में भुट्टो की फांसी पर सवाल खड़े हो गए हैं और उन्होंने 45 साल बाद भुट्टो को दी गई फांसी को गलत बताया है. 

क्या कहता कोर्ट का फैसला? 

2 अप्रैल  2011 को पाकिस्तानी संविधान के अनुच्छेद 189 के तहत पूर्व प्रधानमंत्री भुट्टो को दिए गए मृत्युदंड पर सुप्रीम कोर्ट की राय मांगी थी कि क्या जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी कानूनन रूप से सही था या गलत. वहीं रदारी ने याचिका में कहा था कि 1979 के इस फैसले पर दोबारा गौर किया जाना चाहिए. 

मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने इसे गलत माना और कहा कि 'लाहौर उच्च न्यायालय में हुई सुनवाई और सुप्रीम कोर्ट की ओर से की गई अपील पाकिस्तानी संविधान के आर्टिकल 4 और 9 के मुताबिक़ नहीं की गई थी. इनके तहत निष्पक्ष सुनवाई और तय प्रक्रिया को मौलिक अधिकार के रूप में देखा गया है. संविधान के आर्टिकल 10ए के तहत भी इसे एक मूल अधिकार के रूप में जगह दी गयी है.' 

पाकिस्तान के चीफ जस्टिस काज़ी फ़ैस ईसा ने कहा कि लाहौर हाईकोर्ट की ओर से मामले की सुनवाई और सुप्रीम कोर्ट की अपील एक दूसरे से मेल नहीं खाते, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि हमारे न्यायिक इतिहास में ऐसे कुछ मामले हुए हैं, जिन्होंने आमजन में ऐसी धारणा बनी है कि डर से या फिर पक्षपात करने से न्याय प्रभावित होता है. जब तक हम अतीत में की गई अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करते, तब तक हम खुद में सुधार नहीं कर सकते. अदालत ने कहा कि इस रेफ्रैंस से सैन्य तानाशाह जनरल जियाउल हक के शासन में भुट्टो को मृत्युदंड दिए जाने के मामले पर फिर से गौर करने का मौका मिला है. जिसका नतीजा यो हुआ कि कुल मिलाकर कोर्ट ने कहा कि उनकी फांसी बेबुनियाद थी. 

क्या कहा भुट्टो के बेटे बेनजीर ने? 

कोर्ट के इस फैसले पर भुट्टो के बेटे बेनजीर ने कहा कि 'न्यायिक हत्या के 44 साल और राष्ट्रपति की ओर से रेफ्रैंस दायर होने के 12 साल बाद आज सीजेपी ने निर्णय सुनाया Qj माना कि शहीद जुल्फिकार अली भुट्टो के केस की निष्पक्ष सुनवाई नहीं हुई थी. इन शब्दों को सुनने के लिए हमारे परिवार ने तीन पीढ़ियों तक का इंतजार किया.'