PM मोदी ने चली ऐसी चाल, अखिलेश का PDA फॉर्मूला हो जाएगा बेकार!

बीजेपी की एक योजना के कारण अखिलेश की PDA फॉर्मूला वाली राजनीति बेकार हो जाएगी. Due to a plan of BJP, Akhilesh's PDA formula politics will become useless.

PM मोदी ने चली ऐसी चाल, अखिलेश का PDA फॉर्मूला हो जाएगा बेकार!

लोकसभा चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश में सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं, क्योंकि दिल्ली की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर गुजरता है. बीजेपी ने पिछले दो लोकसभा चुनाव में इसी रास्ते से दिल्ली का सफर तय किया और अब तीसरी बार भी यूपी की सियासी जंग फतह करके सत्ता की हैट्रिक लगाने की कोशिश में है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव अपने पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) फॉर्मूले से बीजेपी को रोकने का दावा कर रहे हैं. अखिलेश के पीडीए फॉर्मूल को बेअसर करने के लिए 2024 के चुनाव में बीजेपी ने पीएम मोदी की विश्वकर्मा योजना को सियासी हथियार बनाने का खास प्लान है.

बीजेपी की नजर उत्तर प्रदेश में ओबीसी वर्ग खासकर अतिपिछड़ी जातियों के वोटबैंक पर है. बीजेपी ओबीसी के वोटबैंक को मजबूती के साथ जोड़े रखने के लिए पीएम विश्वकर्मा योजना को बड़ा हथियार बनाने जा रही है. बीजेपी अगले कुछ महीने में गांव, गली और मोहल्लों में अभियान चलाकर अधिक से अधिक पात्रों को इस योजना का लाभ दिलाएगी. पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री सुनील बंसल ने गुरुवार को लखनऊ में बैठक कर सभी जिलों के पदाधिकारियों व संयोजकों को इसमें पूरी ऊर्जा से जुटने के निर्देश दिए. उन्होंने प्रत्येक विधानसभा में न्यूनतम एक हजार और एक बूथ पर कम से कम इतने लाभार्थियों को जोड़ने का टारगेट दिया है.

पीएम विश्वकर्मा योजना के तहत लोहार, सुनार, कुम्हार, बढ़ई, चर्मकार, दर्जी सहित 18 पारंपरिक कार्यों से जुड़े कारीगरों को बाकायदा प्रशिक्षण दिया जाता है. प्रशिक्षण के दौरान उन्हें पांच सौ रुपये प्रतिदिन भत्ता और टूल किट खरीदने के लिए 15 हजार रुपये प्रोत्साहन राशि दी जाती है. कारीगरों को इस योजना के तहत पांच प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर पर 3 लाख रुपये तक का कर्ज भी सरकार दिलाती है. बीजेपी लोकसभा चुनाव से पहले इस योजना से शिल्पकारों और कारीगरों के बड़े वर्ग को जोड़ने का प्लान कर रही है, पार्टी नेताओं को बाकायदा टास्क भी दिया है.

विपक्ष के हथियार को करेगी बेअसर

सपा से लेकर कांग्रेस तक जातिगत जनगणना को बीजेपी के खिलाफ मुद्दा बनाने में जुटी है ताकि ओबीसी वोटों को साधा जा सके. सपा प्रमुख अखिलेश यादव लगातार कह रहे हैं कि पीडीए से ही बीजेपी को हराएंगे. बीजेपी गैर-यादव ओबीसी के जरिए ही यूपी में दोबारा से खड़ी हुई है और पिछले चार चुनाव (दो लोकसभा, दो विधानसभा) से इस फॉर्मूले से जीत रही है. विपक्ष जातीय गणना के जरिए पिछड़े वर्ग को अपने खेमे में लाने की रुपरेखा बना रहा तो बीजेपी ने विश्वकर्मा योजना को लोकसभा चुनाव से पहले जमीन पर उतारने का दांव चला है.

कारीगर और शिल्पकार के काम से ज्यादातर पिछड़े वर्ग के लोग ही जुड़े होते हैं, इसलिए बीजेपी इन्हें बड़ा वोट बैंक के रूप में देख रही है. इसलिए बीजेपी अभियान चलाकर हुनरमंदों को इस योजना से जोड़ने के लिए प्रेरित करेगी. बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री सुनील बंसल, प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह चौधरी और प्रदेश महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह ने लखनऊ में प्रदेश पार्टी मुख्यालय पर आयोजित बैठक में क्षेत्रीय अध्यक्ष, क्षेत्रीय प्रभारी तथा अभियान के जिला संयोजक व सह संयोजकों को प्रशिक्षण भी दिया. बैठक में प्रत्येक जिले में तीन सदस्यीय समन्वय समिति बनाई गई. यह समिति जिले के अधिकारियों के साथ समन्वय कर अधिक से अधिक पात्रों को योजना का लाभ दिलाएगी.

विश्वकर्मा योजना के तहत कौन-कौन?

विश्वकर्मा योजना के तहत लकड़ी का काम करने वाले, सोने चांदी का काम करने वाले, चर्मकार, धोबी, नाव बनाने वाले, ताला बनाने वाले आदि पारंपरिक कारीगरी से जुड़े लोगों को जोड़ने का टारगेट तय किया गया है. बीजेपी लोकसभा चुनाव तक काल सेंटरों के माध्यम से केंद्र और प्रदेश सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों से लगातार संपर्क में रहेगी. इनसे योजनाओं के बारे में पूछा जाएगा और यह बताया जाएगा कि उन्हें जो लाभ मिल रहा है वह मोदी सरकार की देन है. राष्ट्रीय महामंत्री ने काल सेंटर को लेकर पदाधिकारियों को जरूरी निर्देश भी दिए. संगठन पदाधिकारियों को लाभार्थियों का सत्यापन कर उनकी सूची कॉल सेंटर में देने के लिए कहा है. इस तरह से बीजेपी लोकसभा चुनाव तक लाभार्थियों से सीधे संपर्क बनाए रखने की कोशिश कर रही है ताकि उसका सियासी लाभ मिल सके.

उत्तर प्रदेश की सियासत ओबीसी समुदाय के इर्द-गिर्द सिमट हुई है. सूबे की सभी पार्टियां ओबीसी को सेंटर में रखते हुए अपनी सियासी एजेंडा सेट करने में जुटी हैं. यूपी में सबसे बड़ा वोटबैंक पिछड़ा वर्ग का है. सूबे में 52 फीसदी पिछड़ा वर्ग की आबादी है, जिसमें 43 फीसदी गैर-यादव यानी जातियों को अतिपिछड़े वर्ग के तौर पर माना जाता है. ओबीसी की 79 जातियां हैं, जिनमें सबसे ज्यादा संख्या यादवों की है, आबादी के लिहाज से दूसरे नंबर पर कुर्मी समुदाय के लोग हैं. इस तरह ओबीसी के वोटबैंक में करीब 65 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी अतिपिछड़ा वर्ग की है.

OBC में किसकी आबादी कितनी?

यूपी में यादव समुदाय के बाद ओबीसी की जातियों में कुर्मी-पटेल 7 फीसदी, कुशवाहा-मौर्या-शाक्य-सैनी 6 फीसदी, लोध 4 फीसदी, गड़रिया-पाल-बघेल 3 फीसदी, निषाद-मल्लाह-बिंद-कश्यप-केवट 4 फीसदी, तेली-शाहू-जायसवाल 4, जाट 3 फीसदी, कुम्हार/प्रजापति-चौहान 3 फीसदी, कहार-नाई- चौरसिया 3 फीसदी, राजभर-गुर्जर 2-2 फीसदी हैं. इन्हीं सारे वोटबैंक को बीजेपी अपने साथ जोड़ने में सफल रही है, जिसमें सेंधमारी की कोशिश विपक्ष की तरफ से की जा रही है.

बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में अपने सियासी वनवास को खत्म करने के लिए 2014 के लोकसभा चुनाव में सवर्ण वोटर्स को साधे रखते हुए गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित समुदाय को जोड़कर एक नई सोशल इंजीनियरिंग तैयार करने का काम किया था. बीजेपी ने अपनी इसी रणनीति से सपा और बसपा दोनों के वोटबैंक में जबरदस्त तरीके से सेंधमारी करके अपना एक मजबूत सियासी आधार तैयार किया, जिसके दम पर 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव और 2017 व 2022 के विधानसभा चुनाव जीतने में सफल रही थी.

बीजेपी 2024 के चुनाव में भी इसी वोटबैंक को अपने साथ जोड़ने के लिए पीएम विश्वकर्मा योजना को घर-घर पहुंचने का प्लान कर रही है. इसके लिए बाकायदा पार्टी नेताओं को टारगेट भी दिया गया है. बीजेपी की रणनीति हर एक विधानसभा क्षेत्र में कम से कम एक हजार लोगों और एक बूथ पर पांच लोगों को विश्वकर्मा योजना का लाभ दिलाने का है. बीजेपी विश्वकर्मा योजना को अपने वोटबैंक में तब्दली करने की कवायद में है. देखना है कि 2024 में पार्टी सियासी गुल क्या खिला पाती है या नहीं?