चुनाव हारने का रिकॉर्ड, बने इलेक्शन किंग, कौन है K. Padmarajan जो फिर उतरे मैदान में

65 वर्षीय पद्मराजन 238 बार हारने के बाद भी तमिलनाडु के धर्मपुरी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए अपना नामांकन पत्र दाखिल कर रहे हैं. 65-year-old Padmarajan is filing his nomination papers to contest elections from Dharmapuri constituency of Tamil Nadu despite losing 238 times.

चुनाव हारने का रिकॉर्ड, बने इलेक्शन किंग, कौन है K. Padmarajan जो फिर उतरे मैदान में

लोकसभा चुनाव की तैयारियां  पूरी हो चुकी हैं, भारतीय चुनाव आयोग (ECI) ने लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान भी कर दिया है. 19 अप्रैल से 01 जून के बीच कुल सात चरणों में देश की 543 सीटों पर मतदान किए जाएंगे.

जहां हर उम्मीदवार चुनाव में जीतने का प्रयास करता है, वहीं तमिलनाडु के एक व्यक्ति ने अधिकतम बार हारना का रिकॉर्ड कायम किया है. 65 वर्षीय पद्मराजन 238 बार हारने के बाद भी तमिलनाडु के धर्मपुरी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए अपना नामांकन पत्र दाखिल कर रहे हैं. 

238 बार हार चुके हैं चुनाव 

साल 1988 से पद्मराजन ने अपना चुनावी दौर शुरु किया और 238 बार हारने के बाद भी उन्होंने चुनाव लड़ने से कभी पीछे नहीं हटे, क्योंकि वह हार  कर यह साबित करना चाहते हैं कि लोकतंत्र में कोई भी चुनाव लड़ सकता है और चुनाव लड़ना भी चाहिए.

इन दिग्गजों के खिलाफ मैदान में उतरे 

धर्मपुरी लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार 65 वर्षीय पद्मराजन लोगों को अपना नजरिया समझाते हुए कहते है कि अब तक उन्होंने वाजपेयी, नरसिम्हा राव, जयललिता, करुणानिधि, एके एंटनी, वायलार रवि, येदियुरप्पा, बंगारप्पा, एसएम कृष्णा, विजय माल्या, सदानंद गौड़ा और अंबुमणि रामदास, अटल बिहारी वाजपेयी, वरिष्ठ बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, डीएमके प्रमुख करुणानिधि, एआईएडीएमके प्रमुख जयललिता, बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं. 

गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स की चाहत

साल 2017 में के पद्मराजन ने राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ा था, लेकिन वो भी हार गए. इतनी बार चुनाव हारने के बाद उन्होंने लिमसे बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और दिल्ली बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज करा लिया है, जिसके बाद अब वह गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल होने की कोशिश कर रहे है. 

पंचर की दुकान से कमाए पैसे 

साल 1991 में नरसिम्हा राव के खिलाफ चुनाव लड़ने के दौरान पद्मराजन का आंध्र प्रदेश में अपहरण हो गया था, लेकिन उन्हें चुनाव लड़ने और जागरूकता पैदा करने से कोई नहीं रोक सका, जिसके लिए वह अपनी पंचर की दुकान से पैसे कमाते और चुनाव के लिए लगभग 1 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.